एक और शाम आकर फिर से ढल गई।
पर कहां जेहन से ये तेरी याद मिट गई।।
आजा ए मुसाफिर थम न पा रही रुलाई।।
अकेले चले जा रहे हैं भीड़ में सभी तो।
दौर ए मुश्किल यही तो है सबसे बड़ी।।
किरदार निभाना है फकत जो मिला हमें।
रंगमंच पर अगर जो तालियां हैं बटोरनी।।
यूं तो खैरमकदम हो या हासिल हो गालियां।
तेरे दरबार में सबकी कीमत एक ही रहती।।
जिस राह पर चला रहा है मुझे "उस्ताद" मेरा।
उसी पगडंडी पर चलने का नाम है जिंदगी।।
नलिन "उस्ताद"
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