जल-तरंग सी ये किसने,कानों में हमारे घोल दी।
खुश्क मौसम में मानो,गुलाब ए इत्र ही उडेल दी।।
वो लाख छुपता रहे,आए न सामने हमारे जरा सा।
दिल ए आंख से,यार की मगर तस्वीर तो देख ली।।
दूर तक यहां से दिख रहा है,बस समंदर ही समंदर।
ख़ूबसूरती तो बहुत,मगर प्यास है मुश्किल बुझानी।।
देखी जब से उसकी तस्वीर अपने रकीब के पास।
हमने सारी अदावत भुला दी उससे अपनी पुरानी।।
कहां से चले थे,और कहां,"उस्ताद" देखो पहुंच गए।
नज़ारे तो जरुर जुदा-जुदा हैं,मगर फितरत सब वही।।
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