बिस्तर में आते ही नींद काफूर हो जाती है न जाने क्यों।
याद उसकी बिछड़ कर सोने नहीं देती है न जाने क्यों।।
वो मौजूद है जब हर जगह जर्रा-जर्रा फिर भी कैसे कहूं।
भला वो सांवली सूरत नजर आ नहीं रही है न जाने क्यों।।
बिछड़ कर उससे एक पल के लिए भी जीना है मुश्किल।
ये फिर भी कमबख्त सांस आती जा रही है न जाने क्यों।।
वो कुछ नहीं कह रहा है फिर भी हम जान तो रहे सब।
बता फिर कौन सी बात कदम खींचती है न जाने क्यों।।
जाना है तय एक दिन सभी तो जानते हैं यहां से मगर। "उस्ताद" देखिए हमारी तैयारी आज भी है न जाने क्यों।।
नलिन "उस्ताद"
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