रिश्तों को निभाकर चला पाना मुश्किल तो बड़ा है।
मंझा इस फ़न जो,मेहरबां होता उसपर ही खुदा है।।
तिनके-तिनके होकर बिखर जाएगा सारा घौंसला।
फिर भी जाने क्यों जिद लिए वो हर बार अड़ा है।।
हर हाल छूट कर यहीं रह जाना है जब सब कुछ ही।
ये तेरा और वो मेरा है इन बातों में भला क्या रखा है।।
कुछ हौंसला कुछ उम्मीद से ही छोड़ी थी ये कश्ती हमने।
दो-दो हाथ लहरों से करने का इरादा यूं ही नहीं किया है।।
रास्ते अनजान हों तो जोखिम जरूर है पर है रोमांच भी।
यूं ही नहीं कोई बगैर तपाकर खुद को "उस्ताद" बनता है।।
नलिन "उस्ताद"
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