Friday 30 August 2024

६८६: ग़ज़ल: वो है मेरा तो

वो है मेरा तो अपना कहने में झिझक क्यों रहा भला मान।
साफ़गोई से इश्क में कहिए कब कम हुई किसी की शान।।

हमारे खैरमकदम में कमी तो उसकी तरफ से ज़रा न थी।
सौंधी महक ही घर की मीलों से कर रही आने का एलान।।

सफर में चले हैं जब हम अपने घर की तरफ रुख करके।
दिल बल्लियों उछलने लगा है खुशी से हकीकत ये जान।।

ख्वाब हुए हकीकत में आज पूरे जितने भी थे इन्द्रधनुषी।
भरकर उसे बाहों में नीले आसमां जब भरी ऊंची उड़ान।।

पढ़ तो सकता है"उस्ताद"नजूमी आने वाले कल का हाल।
हालात मगर कभी खोलने से रोकते हैं उसे अपनी ज़ुबान।

नलिन "उस्ताद


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