वफ़ा नहीं भी तो कम से कम ताल्लुकात बनाए रखिए।
कौन जाने कल आपको सहारे की जरूरत हो जानिए।।
माना किसी भी काम के नहीं रहे हम अब आपके लिए।
मगर कहे कौन भला दावे से हम न आपके काम आएं।।
कश्तियां हैं डूब जाती और पार करा देते हैं पत्थर भी।
ये दुनिया बड़ी अजीब-ओ-ग़रीब है सच मान लीजिए।।
हम गए तो थे उनकी महफिल में बड़े सज-संवर कर।
चुपचाप मगर वहां से जनाब,गैर संग रुखसत हो गए।।
"उस्ताद" ये तुम्हारा हक है हमें चाहो या कि न चाहो।
वैसे भी हमें प्यार में किसी का अहसान नहीं चाहिए।।
नलिन "उस्ताद"
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