Wednesday, 24 July 2024

६५३: ग़ज़ल: चाहत तो होती है सभी को अपने आपके दीदार की

चाहत तो होती है सभी को अपने आपके दीदार की।
मगर असल चेहरा देख कहां सुनता है वो आईने की।।

हर शहर की हर गली जहां-जहां से भी हम निकले हैं।
हर तरफ़ तेरे जलवा ए ज़लाल की हो रही चर्चा सुनी।।

ये चांद सितारे,ये रंगो महताब हर तरफ़ जो हैं बिखरे हुए। 
तारीफ कर सकूं कारीगरी की,है कहां लफ्ज़ ए ताब मेरी।।

वो महफिल में आया तो सही मगर फिर रूठके चला गया।
अजब-गजब अदा है उसमें बच्चों की तरह मचलने जैसी।।

"उस्ताद" हम तो कायल हो चुके हैं उसके फन के दिल से।
यूं देखने को कायनात सारी, ये जिंदगी है बहुत-बहुत थोड़ी।।

नलिन "उस्ताद" 

No comments:

Post a Comment