Saturday, 20 July 2024

६४९:: ग़ज़ल: मयखाने में आ तो गए हम

मयखाने में आ तो गए हम मगर क्या।
पीने का सलीका कोई सिखायेगा क्या।।

ग़मों को हलक‌ में उतारना आसान नहीं।
ये कोई बेहतर हमसे जानेगा कहां भला।।

मतलब है इबादत से हो चाहे अन्दाज जुदा।
दिल से निकलनी चाहिए सबके लिए दुआ।।

जिस भी हाल में रहो तुम,ग़म या खुशी में।
हौंसले का हुनर बस अपना बनाए रखना।।

"उस्ताद" फुर्सत है किसे वक्त को बहलाने की।
वक्त ही सभी को अपने रंग में है ढालता रहा।।

नलिन "उस्ताद" 

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