नकली-असली,असली-नकली यहां बन जाती दुनिया है।।
सादगी,करीने से कहीं जाए अगर गुफ्तगू का सलीका हो।
देकर तवज्जो अच्छे से हर बात को सुन लेती दुनिया है।।
मुसाफिर को तो चलते ही रहना है एक मंजिल से दूसरी।
रुककर जो ठहर गया तो फिर कहो कहां रहती दुनिया है।।
किसे गुमान था ख्वाब में भी कि वो हमें इस कदर चाहेगा।
जिसे मनाने के खातिर सजदे में झुकी ये सारी दुनिया है।।
जिंदगी के मेले में उदास,तन्हा क्यों रह रहे "उस्ताद" तुम।
हर हाल मुस्कुराते,रंजोगम पीना,ये चलन यही दुनिया है।।
नलिन "उस्ताद"
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