Saturday, 20 July 2024

६५०: ग़ज़ल: गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई

तेरे दर पे सजदा करने को बेकरारी बड़ी है।
यूं ये हसरत हथेली पर सरसों उगाने की है।।
काबिलियत होती तो कहां थी कोई मुश्किल।
मगर फिर भी तेरी रहमत पर उम्मीद बनी है।।
हर जगह दामन अपना फैला कर देख लिया। 
अब बस खाली तेरी कृपा पर नजरें टिकी हैं।।
ये जिंदगी के रास्ते टेढ़े-मेढ़े समझ कहां मुझे।
हाथ पकड़ के जो चलाए तभी बात बननी है।।
"उस्ताद" बस‌ नाम अपना रख लिया है हमने।
यूं जानता हूं तेरे बगैर मेरी कोई हस्ती नहीं है।।
नलिन "उस्ताद"

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