Wednesday, 10 July 2024

६४७: ग़ज़ल: बेवजह किसी गैर के आगे जाकर क्यों रोइए

बेवजह किसी गैर के आगे जाकर क्यों रोइए।
ज़रूरी हो तो बस खुदा से अपने दुआ करिए।।

वैसे तो हर‌ घड़ी वो तेरे दिल में ही सदा रहता है।
हर बात जो जाने उससे फरियाद क्या कीजिए।।

यूं ग़म और खुशी में फर्क भी कहां कुछ जरा है।
दोनों बदलते रहते पाला बस गौर से जो देखिए।।

जिंदगी तरन्नुम में आपके हिसाब से गाने लगेगी।
बस थोड़ा जो आप सुरों को अपने साध लीजिए।।

हर सांस-सांस जो आता-जाता रहे उसका ही नाम। 
"उस्ताद" फिर आप कहां दुनियादारी में उलझिए।।

नलिन "उस्ताद"

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