Wednesday, 31 July 2024

६६२: ग़ज़ल: जन्नत में आकर के हम

जन्नत में आकर के हम,इबादत ही करना भूल गए।
जिसके दम पर पहुंचे यहां,उसको ही यारा भूल गए।।

परदेस की गलियों में अनजानी,हम भटकते ही रहे।
खिलाड़ी बनने की खातिर,गूगल चलाना भूल गए।।

बरसात हुई है सुना तेरे शहर में,आज  झमाझम बड़ी।
अरसे से मगर हम यहां,सावन-भादों हैं क्या भूल गए।।

तस्वीर खिंचवाएंगे हरी-भरी वादियों में तेरे साथ में हम।
ये सोच सफर में निकले मगर तुझे ही बुलाना भूल गए।।

"उस्ताद" हम,तुम सभी,उसके ही वजूद से रह रहे यहां।
था जो बड़ा मुद्दतों पुराना,वही अनुमोल रिश्ता भूल गए।।

नलिन "उस्ताद" 

Tuesday, 30 July 2024

६६१: ग़ज़ल: थोड़ी बहुत नादानियां बचा के रखो

थोड़ी बहुत नादानियां बचाके रखो।
जिंदगी का फलसफा बांधके रखो।।

हर कोई यहां गमों के साथ जी रहा।
तुम तो कलेजा मजबूत बनाए रखो।।

किसी पे इल्जाम क्यों मढ़ते हो भला।
न भीगना चाहो तो साथ छाते रखो।।

मंज़र तो अभी देखने हैं और भी हंसी।
बस दिल कसकर तुम जरा थामे रखो।।

बांस के जंगल में दरख्त तो सब होंगे बड़े।
"उस्ताद"किरदार तुम अपना संभाले रखो।।

नलिन "उस्ताद"

६६०: ग़ज़ल: साहिल को बाहों में भरने बड़ी दूर निकल लहर आती है

साहिल को बाहों में भरने बड़ी दूर निकल लहर आती है। 
जाने क्यों मगर हर बार ही क्या सोच घर लौट आती है।।

बंदिशों को तोड़ना और चलना नए रास्ते पर आसां नहीं।
हो हौसला अगर तुझमें तो मुश्किलें नहीं कतई डराती है।।

समन्दर हरा,आसमां नीला,काले बादल,सफेद लहरों के नज़ारे।
कुदरत भी न जाने कितने खूबसूरत अहसास हमें दिलाती है।। 

हर कोई मुन्तजिर है तेरे मयखाने में खुद को भुलाने का।
किस्मत मगर कहां हरेक पर मेहरबानी इतना दिखाती है।।

"उस्ताद" हर गली,हर शहर का मिज़ाज है अलहदा।
ये बात आसानी से मगर कहां दुनिया समझ पाती है।।

नलिन "उस्ताद"

Sunday, 28 July 2024

६५९: ग़ज़ल: इश्क करना हमको आसां तो है बहुत लगता यारा

इश्क करना हमको आसां तो है बहुत लगता यारा।
जिस्म से रूह का सफर मगर है उलझा हुआ यारा।।

कभी गर्म रेत पर,तो कभी गले-गले डूब के चलना।
ये प्यार का सफर महज़ फूलों का नहीं होता यारा।।

वो आ तो गया है दरिया ए हुस्न में तैरते हुए दूर तलक।
दिल ए जज़्बात में मगर आया नहीं उसे भीगना यारा।।

उड़ने लगो तो नीला आसमान भी लगता छोटा बहुत।
होता है जब ज़िक्र प्यार का अहसास यही रहा यारा।।

"उस्ताद" हम तो हवा के मानिंद,बहते रहते हैं हर घड़ी।
यूं ये फन है बड़ा मुश्किल,समझ तेरे नहीं आना यारा।।

नलिन "उस्ताद" 

Saturday, 27 July 2024

658: ग़ज़ल: वो अगर न ही होता तो कैसे होता

वो अगर न होता तो कैसे होता।
वो होता अगर भला कैसे होता।।

बेवजह के सवालों से बचकर चलो।
जो भी होता वो भले के लिये होता।।

सुकूं से रहते आप भी हुजूरे आला।
घौंसला जो किसी जुल्फों में होता।।

सदा देकर बुलाया था प्यार से उसने।
काश तब यकीन किया हमने होता।।

"उस्ताद" यूं ही ‌नहीं भटकते रहते आप।
सोचा थोड़ा अगर चलने से पहले होता।।

नलिन "उस्ताद" 

६५७: ग़ज़ल: ये मॉल की दुनिया भी यारब एक अलग रंगीन दुनिया है।

ये मॉल की दुनिया भी यारब एक अलग रंगीन दुनिया है।
नकली-असली,असली-नकली यहां बन जाती दुनिया है।।

सादगी,करीने से कहीं जाए अगर गुफ्तगू का सलीका हो।
देकर तवज्जो अच्छे से हर बात को सुन लेती दुनिया है।।

मुसाफिर को तो चलते ही रहना है एक मंजिल से दूसरी।
रुककर जो ठहर गया तो फिर कहो कहां रहती दुनिया है।।

किसे गुमान था ख्वाब में भी कि वो हमें इस कदर चाहेगा।
जिसे मनाने के खातिर सजदे में झुकी ये सारी दुनिया है।।

जिंदगी के मेले में उदास,तन्हा क्यों रह रहे "उस्ताद" तुम।
हर हाल मुस्कुराते,रंजोगम पीना,ये चलन यही दुनिया है।।

नलिन "उस्ताद"