Monday, 31 July 2023

553: ग़ज़ल: काला गाॅगल

लीक से बंधकर चले तो फिर क्या चले।
बदलकर हवा का रुख हम चलते रहे।।

अनजान राहों की कब,किसने परवाह करी।
मंजिल कदम दर कदम बस हम चूमते बढ़े।।

इश्क में देखा जब ऑंखों में बाल उसकी।
लगा काला गाॅगल नज़रअंदाज सब किए।।

उसकी गली से गुजरना इत्र से है महक जाना।
सजदे उसकी चौखट तभी हर बार करते चले।।

ज़िन्दगी इतनी भी मुश्किल है नहीं "उस्ताद"।
जो फन सीखना ही न चाहे तो कोई क्या करे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

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