Sunday, 30 July 2023

552 :ग़ज़ल: उस्ताद हम भी कहाँ

ख्वाबों पर यकीन क्या करें जब हकीकत भी ख्वाब रहे। ये अलग बात है हर बात पर तेरी हम बेवजह यकीं करें।।

यूँ रंग ए हकीकत जानकर भी उसे ख्वाब कहाँ माना। तमन्नाओं के बुझे हुए चिराग हर बार जलाने में लगे।।

अब तो सफर में बहुत दूर आ गए लौटने से क्या होगा।
सो दरिया ए जिंदगी में चप्पू चलाते रहे बस जैसे-तैसे।।

घनी काली जुल्फ तेरी खुलकर बादलों सी बरस जाए।
बस बनके चातक हम एक उम्र से टकटकी लगाए बैठे।।

सोचता तो हूँ तुझपर बदलने की तोहमत लगा कुछ कहूं।
मगर फिर सोचता हूँ "उस्ताद" हम भी कहाँ रहे पहले से।। 

नलिनतारकेश@उस्ताद

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