Friday, 21 July 2023

549: ग़ज़ल- है आजकल

भला जाने यहाँ कौन गलत कौन सही है आजकल।
आईने में सहुलियत से तस्वीर दिखती है आजकल।।

कुछ नया हो यूनीक सा बस इसकी खातिर। 
अंधेरों की खरीदारी भी तगड़ी है आजकल।।

शोबाजी का डंका है बखूबी जहां सजा हुआ।
भीड़ भी वहीं लोगों की दिखती है आजकल।।

मिट्टी की महक फूंकती थी जो जान कभी गांव की। राजनीति यहाँ शहर को पटखनी देती है आजकल।।

तरक्की की हवा ऐसी कभी चलती देखी नहीं "उस्ताद"। जवानी खुद से जैसे अपनी इज्जत डूबो रही है आजकल।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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