Friday, 28 July 2023

551: ग़ज़ल: समझौता न किया

रात आई नहीं नींद तो परेशान भला क्यों होता।
छत पर जाकर बस सितारों का हाल पूछ लिया।।

करवटें बदलना ही तो नहीं है बेवफाई का इलाज।
हजारों हैं दुनिया में मुझसे फिर भला मैं क्यों रोता।।

हर कदम इम्तहान लेती रही है अड़ियल जिंदगी। 
ठेंगे में रखा हमने भाव कभी इसको नहीं दिया।।

सूरज,चांद से हम बिखेरते हैं जलवा कहीं जा एक रोज।खुदा के इंसाफ में वक्त सबका एक मुकर्रर लिखा देखा।।

तुम होगे शातिर बड़े तो जान लो हम भी "उस्ताद" हैं।
हमने समझौता किसी हाल उसूलों से अपने न किया।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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