Saturday, 8 July 2023

547: ग़ज़ल: शागिर्दी तेरी मिल जाए

एक मुद्दत बाद मिले हम तो आलम ये हुआ। 
पलक झपकते ही सारा दिन यूँ गुजर गया।।

पुरानी यादों की दरिया में पतवार चलाते-चलाते।
किनारे लगाने का कश्ती किसको अहसास रहा।।

रंगों से लबालब भरी कूची चलाने का अंदाज अलहदा।
मुहब्बत की बौछार लिए दिलों में इंद्रधनुष बनाने लगा।।

सफर चलेगा कभी आसमां तो कभी रेतीली जमीं पर। ढूंढने में भला वक्त कदमों के निशान क्यों ज़ाया किया।।

शागिर्दी जो तेरी मिल जाए "उस्ताद" तभी तो बात है।
हर बार चौखट पर सजदे से वर्ना कहां कुछ हांसिल हुआ।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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