Monday, 31 July 2023

553: ग़ज़ल: काला गाॅगल

लीक से बंधकर चले तो फिर क्या चले।
बदलकर हवा का रुख हम चलते रहे।।

अनजान राहों की कब,किसने परवाह करी।
मंजिल कदम दर कदम बस हम चूमते बढ़े।।

इश्क में देखा जब ऑंखों में बाल उसकी।
लगा काला गाॅगल नज़रअंदाज सब किए।।

उसकी गली से गुजरना इत्र से है महक जाना।
सजदे उसकी चौखट तभी हर बार करते चले।।

ज़िन्दगी इतनी भी मुश्किल है नहीं "उस्ताद"।
जो फन सीखना ही न चाहे तो कोई क्या करे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Sunday, 30 July 2023

552 :ग़ज़ल: उस्ताद हम भी कहाँ

ख्वाबों पर यकीन क्या करें जब हकीकत भी ख्वाब रहे। ये अलग बात है हर बात पर तेरी हम बेवजह यकीं करें।।

यूँ रंग ए हकीकत जानकर भी उसे ख्वाब कहाँ माना। तमन्नाओं के बुझे हुए चिराग हर बार जलाने में लगे।।

अब तो सफर में बहुत दूर आ गए लौटने से क्या होगा।
सो दरिया ए जिंदगी में चप्पू चलाते रहे बस जैसे-तैसे।।

घनी काली जुल्फ तेरी खुलकर बादलों सी बरस जाए।
बस बनके चातक हम एक उम्र से टकटकी लगाए बैठे।।

सोचता तो हूँ तुझपर बदलने की तोहमत लगा कुछ कहूं।
मगर फिर सोचता हूँ "उस्ताद" हम भी कहाँ रहे पहले से।। 

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 29 July 2023

आदिदेव महादेव

आदि देव,महादेव आप कृपा सदा करें।
समस्त सृष्टि,परम-पुरूष,पाप सब हरें।।

भस्म-अंग सुलेपित,जटाजूट गहन धरें।
शीश-शशांक,मां भागीरथी निर्बाध बहें।।

बाघम्बर एकमात्र,कर्पूर गौरवर्ण खूब छजे। 
नलिन-नयन,त्रिनेत्रधारी कामना सब जलें।।

डम-डम बाज रहा डमरू,आप नृत्य करें।
रसिक नटराज,उमा संग मधुर भाव बहें।।

शूलपाणि,पिनाकधारी पाप त्वरित नष्ट करें।
हम नादान बालक तारकेश,हमको क्षमा करें।।

सदा विराज उर में हमारे,भक्ति भाव भरें।
श्री राम आपके आराध्य का,मंत्र हम जपें।।

नलिनतारकेश

Friday, 28 July 2023

551: ग़ज़ल: समझौता न किया

रात आई नहीं नींद तो परेशान भला क्यों होता।
छत पर जाकर बस सितारों का हाल पूछ लिया।।

करवटें बदलना ही तो नहीं है बेवफाई का इलाज।
हजारों हैं दुनिया में मुझसे फिर भला मैं क्यों रोता।।

हर कदम इम्तहान लेती रही है अड़ियल जिंदगी। 
ठेंगे में रखा हमने भाव कभी इसको नहीं दिया।।

सूरज,चांद से हम बिखेरते हैं जलवा कहीं जा एक रोज।खुदा के इंसाफ में वक्त सबका एक मुकर्रर लिखा देखा।।

तुम होगे शातिर बड़े तो जान लो हम भी "उस्ताद" हैं।
हमने समझौता किसी हाल उसूलों से अपने न किया।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 22 July 2023

550: ग़ज़ल: दूसरे की खुशी में

चलो दर्द मुझे मेरा ये एहसास तो दिलाता है।
घबरा नहीं यारब अभी तू मरा नहीं जीता है।।

खुशियों के समंदर में डूबकर खुद को खो दिया है।
दर्द ही है वो शै जो हमें खुद से ढूंढ कर मिलाता है।।

सफर में चलते-चलते पांवों में छाले पड़ गए तो क्या।
आंखिर जोश और जुनून ही तुझे मंजिल दिखाता है।।

तेरी गली से गुजरे एक जमाना हो गया हमको याखुदा।
अब तो हर रोज ख्वाब तेरा मुझको तुझसे मिलाता है।।

दूसरे की खुशी में जब खुशी दिल से मिले "उस्ताद"।
रंजोगम अपना कोई भी बड़ा कहाँ जरा याद आता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 21 July 2023

549: ग़ज़ल- है आजकल

भला जाने यहाँ कौन गलत कौन सही है आजकल।
आईने में सहुलियत से तस्वीर दिखती है आजकल।।

कुछ नया हो यूनीक सा बस इसकी खातिर। 
अंधेरों की खरीदारी भी तगड़ी है आजकल।।

शोबाजी का डंका है बखूबी जहां सजा हुआ।
भीड़ भी वहीं लोगों की दिखती है आजकल।।

मिट्टी की महक फूंकती थी जो जान कभी गांव की। राजनीति यहाँ शहर को पटखनी देती है आजकल।।

तरक्की की हवा ऐसी कभी चलती देखी नहीं "उस्ताद"। जवानी खुद से जैसे अपनी इज्जत डूबो रही है आजकल।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 20 July 2023

548: ग़ज़ल- पता नहीं क्यों

अक्सर बहुत परेशान है रहता पता नहीं क्यों।
खुद पर यकीन नहीं कर पाता पता नहीं क्यों।।

माल-असबाब किसी की भी तो कमी नहीं है।
जाने फिर हवस बनाए रखता पता नहीं क्यों।।

दुनिया तो चलेगी धूप-छांव के साथ-साथ यूँ ही।
पते की ये बात मगर वो समझता पता नहीं क्यों।।
 
सुनहला मुस्तकबिल गढ़ती हैं दर्द भरी राहें ही। 
ये जानकर भी हौंसला डिगाता पता नहीं क्यों।।

हर दिन नया है आफताब* जान लीजिए "उस्ताद"।*सूर्य 
बीती रातों के अश्क ए मोती पिरोता,पता नहीं क्यों।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday, 14 July 2023

रोम-रोम नलिन खिले

तेरी कारी घुंघराली पलकों पर कोटि कामदेव वारि पाऊं।  हे नटवर-नागर तेरी खातिर उपमान खोज कहाँ मैं पाऊं।।

कजरारे नैनों की रसभरी चितवन देख और कहाँ मैं पाऊं।
यदि हो असीम कृपा तेरी तो अनुभूति मैं भी थोड़ी पाऊं।। 

लाल बिंब फल सदृश अधरन को चुंबन कपोल पर पाऊं। यह अभिलाषा उर की मेरी,बता कौन घड़ी सच में पाऊं।।

दंत पंक्ति स्फटिक तुल्य चमचम चमकती विलक्षण पाऊं।
चुरा ले जो चैन सर्वांग मेरा फिर भला ठौर कहाँ मैं पाऊं।।

हे गोविंद दो सुमति मुझको ध्यान तेरा हर क्षण कर पाऊं। रोम-रोम नलिन खिले सहस्त्रदल यही कृपा तेरी मैं पाऊं।।

नलिन@तारकेश

Saturday, 8 July 2023

547: ग़ज़ल: शागिर्दी तेरी मिल जाए

एक मुद्दत बाद मिले हम तो आलम ये हुआ। 
पलक झपकते ही सारा दिन यूँ गुजर गया।।

पुरानी यादों की दरिया में पतवार चलाते-चलाते।
किनारे लगाने का कश्ती किसको अहसास रहा।।

रंगों से लबालब भरी कूची चलाने का अंदाज अलहदा।
मुहब्बत की बौछार लिए दिलों में इंद्रधनुष बनाने लगा।।

सफर चलेगा कभी आसमां तो कभी रेतीली जमीं पर। ढूंढने में भला वक्त कदमों के निशान क्यों ज़ाया किया।।

शागिर्दी जो तेरी मिल जाए "उस्ताद" तभी तो बात है।
हर बार चौखट पर सजदे से वर्ना कहां कुछ हांसिल हुआ।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 3 July 2023

गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व

श्रीगुरुचरण रज की,हम सबको ही तो दरकार है।
बगैर उसके कहाँ,जीवन की नैया अपनी पार है।।

गहन-तिमिर,अज्ञान-मोह का छाया हुआ है।
श्वास-श्वास गुरु नाम ही,बस एक पतवार है।।

हाथ को भी हाथ सूझता,यहाँ कुछ भी नहीं है। 
एक है बस वही जो,हम सबका पालनहार है।।

हम सभी यहाँ माया के वशीभूत हो,कर्म कर रहे हैं। 
करुणानिधि है बस वही,जो करता नित्य उपकार है।।

सहज,सरल हो यदि करता,हृदय उसकी याद है।
कहो क्या है भला असंभव,जब वही जगताधार है।।

निश्चल प्रेम की बस एक पुकार ही,उसे दरकार है।
दौड़ते आ जाता नंगे पांव,रहता कहाँ निराकार है।।

नलिनतारकेश

Saturday, 1 July 2023

546: ग़ज़ल - बरसात बादल कुदरत

उमड़ते-घुमड़ते बादल,जब बरसते हैं।
नया एक जोश,जज्बातों में भरते हैं।।

उम्र की सीढियां कितनी चढ़ी,भला कौन गिने।
छत में जाकर,हम तो बस मदमस्त नहाते हैं।।

कुदरत की कितनी अनमोल शै है,ये बरसात भी।
मोर इठला के नाचते,पपीहे दादुर देखो कूकते हैं।।

मुरझाए हुए पौधों की देह तो,जरा देखो तुम।
कितने चिकने,हरे-भरे होकर,खिलखिलाते हैं।।

"उस्ताद" तुम भी तो सीखो,कुछ बादलों से।
कैसे बगैर भेदभाव,हर किसी को भिगो देते हैं।।

नलिनतारकेश