Thursday, 29 September 2022

गीत: कैसा है?

भला कहो तुम  कैसा है?
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गले लगाना गैरों को,ये काम तो बड़ा ही अच्छा है। 
मगर भुलाना अपनों को,भला कहो तुम कैसा है।। 

सांस-सांस,जब हो बाट जोहती,सदा तुम्हारी।
सोचो जरा तुम हमको,फिर तरसाना कैसा है।।

धन,वैभव,रूप,यश,नाम पताका फहराती रहे यूँ ही।
लेकिन जाना हो जो खाली हाथ,तो इतराना कैसा है।।

शाश्वत सच यही है प्यारे,हर क्षण को बदलते रहना है।
ऐसे में जो आए दु:ख,तकलीफ तो फिर रोना कैसा है।।

यूँ  तो है संसार उसी का,पर मैं भी तो सदा से उसका हूँ। 
बात सरल जो समझ न आए,तो आत्मसमर्पण कैसा है।।

नलिनतारकेश

Monday, 26 September 2022

नवरात्र गीत

नवरात्र गीत -या देवी सर्वभुतेषू
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मैं लिखूं गीत तुम उसे सुरों में ढालकर,मोहक सजा दो।
गीत,सुरों पर फिर कोई उसे आवाज दे,गाकर सुना दो।
तालवाद्य विविध बजा फिर,जरा चार चांद उसमें लगा दो।
शिल्प-कला,नृत्य-मुद्रा और चित्र,तूलिका से भी उकेर दो।  याने कि जितने भी हैं आयाम कला के,सब उसमें भर दो। खिलाने को फिर ये इंद्रधनुष,चलो उन्हें हर जगह उगा दो।
जिसके पास जो भी है हुनर उसको,मुक्त-हस्त दिखाने दो। निष्णात हो या न हो कोई भी तो,उसे झिझक मिटाने दो। चेतना का अनन्त विस्तार लिए,प्रेम का वितान फहरा दो।
सृष्टि का पराग-कोष मकरंद सा,उर में सबके खिला दो।।

नलिनतारकेश

Thursday, 22 September 2022

468:ग़ज़ल

महफिल सजा कर वो तो चुपचाप चला गया। 
हंसते-हंसते पी हलाहल पर हमको रुला गया।।

झोली में हमारी भर कर यादों का खजाना गया।
खुद खाली हाथ बन कर फकीरों का राजा गया।।

सोचा जब तक बाहों में भरकर थाम लूं उसको।
हथेली से मगर बेखबर वो फिसल पारे सा गया।।

चाशनी में डूबी जलेबी सी छानकर ढेर बातें।
अपने रंगों अंदाज से दिल जीत सबका गया।।

वहीं फाकामस्ती वही सादगी जो विरासत* में मिली थी। 
बड़े एहतराम खुशी से "उस्ताद" सब पर लुटाता गया।।
*बब्बा जी से
नलिनतारकेश "उस्ताद"

Friday, 16 September 2022

467: ग़ज़ल

जिक्र होता है जब कभी मेरे कूचा ए यार का।
लबालब सारे जहाँ बहता है दरिया प्यार का।।

थाम लेता है जो हाथ सुबकते हुए देखकर। 
बोझ सर से उतर जाता है हमारी हार का।।

कदम बढ़ाओ तो सही चौखट पर फासला मिट जाएगा। बड़ा मुलायमियत भरा फ़राख़दिल*है मेरे दिलदार का।। *उदार 

रहेगी नशे की खुमारी महज बांसुरी की धुन पर।
होश फिर होगा ही नहीं तुमको उसके दीदार का।।

मौसम ए मिजाज पढ़ना उसका हँसी-ठठ्ठा नहीं है यारब। 
हैरान है "उस्ताद" भी देख जलवा सांवले सरकार का।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Sunday, 11 September 2022

466:ग़ज़ल

ऐसे ही कुछ भी
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यूँ तो लिपे-पुते हम दिखाते बड़े एटिकेट हैं।
जो सच पूछिए तो सभी भीतर से फ्रस्टेट हैं।। 

बात गई रात गई छोड़ो भी रोना-धोना अब। 
जज्बा दिखा आगे बढ़ो बेइंतहा प्रोस्पेक्ट हैं।।

लेना नहीं कतई बच्चा समझ के उससे पंगा।
ये पहले से मासूम नहीं मारते अब करेन्ट हैं।।

गधे भी आलिम फाजिल देखो अब तो बन गए।
बनें न पर शिकार "आप" बस यही रिक्वेस्ट है।।

सर से पांव फूहड़ता से लदे-फदे जो दिख रहे।
आजकल वो सभी हमारे बने चहेते इलीट हैं।।

लिखना न चोरी-छिपे ग़ज़ल अपने नाम से।
हर एक अशआर उस्ताद के पेटेंट हैं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 10 September 2022

465:ग़ज़ल

तेरी रजा ही मेरी अना है।
बाकी तो खुद पे क़ज़ा है।।

दुनियावी शहवत* को जीना।*भोग-विलास 
सचमुच खुद में एक सज़ा है।।

पहलू में बैठना तेरा।
कारगर मेरी दवा है।।

जो कभी हुआ नहीं हमारा।
उसका भी क्या सोचना है।।
 
उसकी गली से गुजर के देख तो।
तय तेरा खुद को भूल जाना है।।

उसका दीदार अमावस में।
पूनम का चांद देखना है।।

निगाहों से "उस्ताद" बोलना।
बड़ी कातिलाना तेरी अदा है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Thursday, 8 September 2022

464:ग़ज़ल

है अपने पास क्या सिवा एक दुआ। 
होगा वही आंखिर जो मंजूरे खुदा।।

जो चौखट पर उसकी रहा बावफ़ा।
करता है वो उसको सबकुछ अता।।

ये दुनिया,ये कायनात यूँ ही नहीं चल रही।
वो तो करना चाहता है हम सबका भला।।

प्यार में,रंज में बस गुफ्तगू रब से किया करो।
जीने का असल जिंदगी बस यही है फलसफा।।

बगैर उसके सांसो में न महक है,न ताजगी है।
सो करते रहो हर हाल बस उसका शुक्रिया।।

जीत लिया दिल जिसने मां-बाप का अपने।
खुदा को उसने अपना खादिम बना लिया।।

आंचल में चांद,तारे,आफताब हैं जाने कितने।
दीदार पर कर न पाया कभी "उस्ताद" उसका।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Wednesday, 7 September 2022

463: ग़ज़ल

तेरी रूह की खुशबू महका रही है।
लगता है तुझे मेरी याद आ रही है।।

गुमनाम मोहल्ला मेरा अब चर्चा में है।
तेरी आवा-जाही यूं कमाल ढा रही है।। 

सावन-भादो सूखे ही बीत जा रहे तो क्या।
जब निगाहें ही हमारी आंसू छलछला रही है।।

फजीहत से डरता ही कहो अब यहाँ कौन है।
ये तो बनकर अब जाहो-जलाल* छा रही है।।*मान-प्रतिष्ठा

मस्जिद भला क्यो जाएं "उस्ताद" हम।
जब भीतर ही कस्तूरी खिलखिला रही है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 5 September 2022

संभवामि युगे युगे का तुमुल जयघोष धर्म संस्थापनार्थाय। 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐

संभवामि युगे युगे का तुमुल जयघोष धर्म संस्थापनार्थाय।
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कबड्डी कबड्डी कबड्डी की तर्ज पर आज तो हर जगह।
बॉयकॉट बॉयकॉट बॉयकॉट का ट्रेंड वायरल हुआ है। 
लोगों को अब सचमुच जिसमें मजा बड़ा आने लगा है। 
यूं अब तो गड़े मुर्दे भी सारे उखाड़कर लाए जा रहे हैं।
नए पुराने सबका ढीला करैक्टर स्कैन किया जा रहा है।
कमरकस इच्छाधारी मायावी ड्रैगन ब्रह्मास्त्र बनके आया।
मगर फुस्स हो चला नहीं सो कहो कहाँ ये चलेगा दुबारा।
दरअसल हद से ज्यादा कसम से नंगी जमात सेक्यूलर की।
लाल चढ्ढी जो पहनी थी बमुश्किल वो भी अब उतर गई है।
तभी तो कलयुग में देखो जनता को ही कृष्ण बनना पड़ा है। 
शिशुपालों के खिलाफ बॉयकॉट ट्रेंड पूरी शिद्दत व शक्ति से। 
जाति-धर्म से उठकर ऊपर एकजुट हो निकालना पड़ रहा है।
दरअसल कंस,रावण,दुर्योधन सभी कलयुग में एक मंच पर। 
आकर खड़े हैं नेता,अभिनेता,आवार्ड वापसी गैंग आदि बनके।
सर तन से जुदा का परचम लहराने वाले भुला आपस की जंग। 
बेखौफ बेशरम होकर इनके साथ गठबंधन को तैयार खड़े हैं।
अतः संभवामि युगे युगे का तुमुल जयघोष धर्म संस्थापनार्थाय।
हम,आप,सभी को हर हाल में पुरजोर करते रहना पड़ेगा।
ये अपनी भारत की माटी रहे सदा-सदा को निष्कलुष,निर्मल।
बस इसकी ही खातिर संस्कारों की फसल को बचाना पड़ेगा।

नलिनतारकेश

Sunday, 4 September 2022

राधाष्टमी

राधा राधा राधा।राधा नाम है एक  धारा।

अहर्निश बहने वाला।अमर भक्ति का दाता।

श्री चरणों से बहता जाता।जिस में डूबा जग ये सारा। 

जिसने इसमें गोता खाया।उसने इसका स्वाद है जाना। 

हर पल सांसों का आना जाना।व्यर्थ यदि इसको न गाया।

जो चाहो तुम इसको पाना।शक्तिपुंज अद्भुत ये सारा।

मात्र सब समर्पण कर दो सारा।और नहीं कोई भी चारा।।

नलिनतारकेश 

राधे-राधे।

Saturday, 3 September 2022

462: ग़ज़ल

गजल सुनकर वो तो मेरी रोने लगा था।

बेसबब उसका ही दर्द बयां हो गया था।।


दु:खती रग शायद रख दिया था हाथ उसकी।

बेवजह ही मुझे वो चारागर समझने लगा था।।


यूँ तो बीमार है यारब यहाँ हर कोई।

हमको ही मगर अपना ना पता था।।


चेहरे पर देखो हवाइयां उड़ रही हैं उसके।

जमाने का दरअसल वो सताया हुआ था।।


अजनबी हो गया है यह अपना ही शहर हमसे।

बदलेगा वक्त करवट ऐसे किसको ये पता था।।


लिखते हैं कलाम "उस्ताद" जो हर रोज हम।

दर्द निथारना ये निहायत जरूरी हो गया था।।


नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday, 2 September 2022

रिझाने के लिए

जाने कब आ जाए मेरा सांवरा मुझसे मिलने के लिए।
जरा कर तो लूं सोलह श्रृंगार उसको रिझाने के लिए।।

अभी तक तो देह,मन,बुद्धि सभी अत्यंत कलुषित रहे हैं।
करना तो पड़ेगा मगर परिश्रम स्वयं को संवारने के लिए।।

भटकता रहा हूँ धरा में आसक्तियों के चलते जाने कब से। ऐसे कहाँ पर निर्वाह होगा प्यास अपनी मिटाने के लिए।।

चिंता बाह्य परिवेश मलिनता की नहीं बस अंतर्मन की है।
जो मिटानी तो होगी उसकी दृष्टि में सदा बसने के लिए।।

लग जायेंगे जाने कितने जन्म अभी और ये किसे ज्ञान है।
सो करूं मैं अनुनय उसी सांवरे से अपना बनाने के लिए।।

नलिनतारकेश

 

Thursday, 1 September 2022

461: ग़ज़ल

लोग जब पत्थर बांध छाती पर तैर रहे।
नंगे पांव चलना भी हमें नागवार गुजरे।।

भीतर झांक कर करें खुद से कैसे गुफ्तगू।
देखने से फुर्सत कहाँ हमें दुनिया के मुजरे।।

परत दर परत पहन नकाब प्याज के छिलकों की मानिंद। 
रिश्ते टिकें नहीं तो भला ताज्जुब कोई कैसे किया करे।।

असल,नकल में बताए कोई कैसे फर्क रत्तीभर का।
कांच ही जब बाजार में हीरे सा मुनव्वर* बिकने लगे।। *चमकीला/रौशन 

उसका तसव्वुर* इतना भी आसान नहीं है "उस्ताद"। *कल्पना
दीदार फिर मयस्सर* हकीकत में भला हो तुझे कैसे।।*उपलब्ध 

नलिनतारकेश @उस्ताद