Friday, 31 December 2021

गजल- 412: नववर्ष शुभारंभ 2022

नवल वर्ष के आगमन पर आप सबका स्वागत अभिनन्दन 
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HAPPY NEW YEAR 2022 TO ALL 

रंग बिखेरे ख्वाब सारे हकीकत की जमीन पर।
मयखानों की मस्ती यूँ ही छाई रहे तेरी हंसी पर।।

चले ये सिलसिला आज,कल नहीं सालों-साल यूँ ही।
जोशे जुनून की खुशबू ले सदके तेरी दीवानगी पर।।

जिधर कदम चल पड़ें हवा वसंती हो जाए उस तरफ।
मंजिल दर मंजिल छाएं तेरे बाज़ौकी* सुरखाबी** पर।।
* कलापूर्ण **विलक्षण 

जादू जगाएं हैं जो तूने घनी जुल्फों के साए तले।
ता-उम्र सजे खुसूसी* महफिलों का दौर वहीं पर।।*खास

नूरानी आँखों की कशिश मतवाला बना दे सबको।
पिए "उस्ताद" हर कोई यहाँ तेरी-मेरी सलामती पर।।

@नलिनतारकेश

Tuesday, 28 December 2021

411:गजल- इनायते करम अपना तो फरमाइए

सर्दीली हवाओं का भी तो जनाब कभी लुत्फ उठाइए।
कश्मीर ना सही अपनी छत पर ही जरा टहल आइए।।

माशाअल्लाह कागज के पुलिन्दे नहीं जो गल जायेंगे आप। 
सरहद की धूप,सर्दी खड़े जज्बे को दिल से सलाम ठोकिए।।

गरमा-गरम चुस्कियां चाय की भी जरा पिया कीजिए।
जरूरी नहीं कि हर बार हाथ में आप जाम ही लीजिए।।

पेशानी की सलवटो के लिए बिस्तर ही ज्यादा मुफीद है।
कुछ घड़ी सुकूने जिंदगी को ये हिसाब-किताब छोड़िए।।

जुनून जो रहेगा दिल में हर जंग जीत लेंगे आप।
यूँ ना हर बात-बेबात अपनी सूरत रोनी बनाईए।।

जलवों का जिक्र करूं कैसे "उस्ताद" बता तो सही।
इनायते करम जरा अपना इस नाचीज तो फरमाइए।।

@नलिनतारकेश

Monday, 27 December 2021

410: गजल --हमें तो नींद आती

गुनगुनी धूप जाड़ों की पीठ को जब भी है सहलाती।
यादें फिर तुम्हारे साथ की दिलों में अपने गुनगुनाती।।

गुलों में सुबह-सुबह ओस की नन्ही बूदें जब गुनगुनाती।
हौले-हौले कहें बातें कुछ राज की लबों पर मुस्कुराती।।

नामचीन होकर दुनिया को रोशन कर रहा जो एक दिया। 
फ़ना कर खुद को जब तलक खामोश जलती रही बाती।।

धड़कनें गीत गाती है डूब के जब कभी तुम्हारे प्यार के। दर्द भरी रातें भी रूहे दिल को हैं महकाने करीब आती।।

सर्द रातें चुपचाप दबे पाँव लेती हैं आकर अंगड़ाईयां।
जुल्फों में गरम लिहाफ के "उस्ताद" हमें तो नींद आती।।

@नलिनतारकेश

Sunday, 26 December 2021

गजल 409 नशे में चूर हो गए

तुम हमारे हम तुम्हारे जबसे हो गए। 
जिंदगी के रास्ते आसां तबसे हो गए।। 

अजनबी थे हम कभी एक मोड़ पर यारब।
पड़ी पेंगें प्यार की तो एक दूजे के हो गए।।

परिंदे खुले आकाश में उड़ते हुए देखिए बांवले हैं। 
ख्वाब हमारे भी हकीकत में उनके जैसे हो गए।।

किसी ने कब था सोचा कि ऐसा भी हो जाएगा।
अब तो रेत में हर ओर गुलशन महकते हो गए।।

जश्ने बहार का दौर तो अभी शुरू हुआ है जनाब।
आप तो अभी से ही "उस्ताद" चूर नशे में हो गए।।

@नलिनतारकेश

Saturday, 18 December 2021

गजल:408 शिरकते महफिल

तू जानता है मेरे दिल में क्या कुछ धड़कता है।
मगर गजब है फिर भी मासूम बना फिरता है।।

बहलाने-फुसलाने की भी एक हद होती है यारब।
हर घड़ी मगर तू तो बहाना फासले का ढूंढता है।।

जाने कब से तेरी चौखट,सजदा किए बैठा हूँ मैं।
क्या करूं खत्म नहीं कभी तेरा इन्तज़ार होता है।।

ये सच है तेरे बगैर जिंदा नहीं मैं मुर्दा ही रहा हूँ।
हद है लेकिन तू तब भी मगर मौज पूरी लेता है।।

आ जो जाए दिल तेरा किसी की मासूमियत पर।
उसकी खातिर तू तो सारे अपने उसूल तोड़ता है।।

जाने कितने आए और चले गए "उस्ताद" यहाँ से।
शिरकते महफिल में अपनी कुछ खास ही चुनता है।।

@नलिन तारकेश

Friday, 17 December 2021

गजल-407 :असल उस्ताद कहते हैं

जाने कैसे कुछ लोग अजब सांचे में ढले होते हैं।
अपनी कौम की खातिर जो हर जुल्म सहते हैं।।

मुद्दतों बाद कभी-कभार अब लोग मिलते हैं।
फकत देखने एक दूजे को वो सब तरसते  हैं।।

वो क्या दिन देखे थे गलबहियां डाले कभी हमने।
आज तो भीड़ में भी लोग बस तन्हा ही रहते हैं।।

जाने कैसा ये दौर आया जरा कहो तो यारों। 
मिला पीठ से पीठ भी गुमशुदा लोग रहते हैं।।

गम,तकलीफें सारी आस्ताने में जिसके दम तोड़ दें। जमाने वाले तो उसी को असल "उस्ताद" कहते हैं।।

@नलिनतारकेश

Tuesday, 14 December 2021

गजल- 406 :भोली नादानियां


भोली नादानियां हम भला अपनी किससे कहें।
समझ आयी नहीं ये दुनिया कभी किससे कहें।।

फिरते रहे जो तसव्वुफ़* हम सजाए हुए ख्वाबों में।*अध्यात्मवाद
वो रंगों में दिखी ही नहीं फाकामस्ती किससे कहें।।

हर शख्स यहाँ अजब गुमशुदा सा खुद में मिला।
गुल उगते ही नहीं यारों बंजर जमीं किससे कहें।।

खामोश हैं कोहरे की चादर लिपट रिश्ते सारे।
महकती नहीं इत्र सी हँसी कहीं किससे कहें।।

परेशां है "उस्ताद" मुस्तकबिल के लिए इनके।
शागिर्द नहीं कूवते फना दिखती किससे कहें।।

@नलिनतारकेश 

Monday, 13 December 2021

यायावर सा मन

यायावर सा मन भटकता जो रहा सदा मेरा।
जाकर मिला आज उसको आश्रय अब तेरा।।

वरना तो था जरा से दर्द पर क्रंदन ही नित्य करना।
या कि मिली पल भर की खुशी में  खिलखिलाना।।

मगर ऐसे तो रिस-रिस कर पोर-पोर ही चटक गया।
उलझ मायाजाल में तुझे प्यारे सचमुच ही भूल गया।।

तू ही तो है ब्रम्हाण्ड नायक मैं रहा सर्वदा अंशी तेरा।
जाने क्यों फिर इस बात को सिरे से ही नकार दिया।।

जो हुआ सो हुआ क्यों व्यर्थ अब वक्त को कोसना।
तेरी कृपा अनुदान से जब स्वयं को मैं पहचान रहा।।

अब तो बस शरणागति का उपहार जबसे मुझको मिला।
प्रयास है बस यही एक सांस भी व्यर्थ न रुके सिलसिला।।

@नलिनतारकेश

Sunday, 12 December 2021

गजल-405 कायल करके ही रहेंगे।

तुझे चाहा है हमने तो दर्द भी सहेंगे।
जिक्र किसी से न मगर इसका करेंगे।।

अश्क सरेआम तेरे गम में बहाए क्यों।
अंधेरी रात तन्हा हम चुपचाप रोएंगे।।

फासले हैं तो बस एक तेरी जिद के चलते।
चौखट से मगर कभी हम उठ के न जाएंगे।।

आशिकों की मुसलसल* चाहत रहा है तू।*लगातार 
बगैर अपना बनाए तुझे जाने कहाँ देंगे।।

देखा ही कहाँ है "उस्ताद" तूने अंदाज़ अपना।
देर-सबेर कायल हम तूझे अपना करके ही रहेंगे।।

@नलिनतारकेश

Saturday, 11 December 2021

महिमा राम नाम की

महिमा राम नाम की
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जिन्दगी कृपा संग संवरने लगी। 
राम नाम महिमा पता जो लगी।।
 
श्रृंगार की जरूरत अब नहीं रही।
जबसे लौ राम जी की लगने लगी।।

हर घड़ी हर सांस बस रटन ये लगी।
राम-राम जपते ही उम्र कटने लगी।।

जिधर देखूं बस वो ही मूरत न्यारी दिखी।
नलिन-नील सांवली छटा ही दिखने लगी।।

 दर्द,पीड़ा की बयार अब थम सारी गई।
 हर दिशा बस हवा अनुकूल बहने लगी।।

स्वपन नहीं हकीकत की ये बात है सही।
मंझधार मेरी ये नाव भी पार लगने लगी।।

@नलिनतारकेश

Wednesday, 8 December 2021

विनम्र श्रद्धांजलि -विपिन रावत एवं अन्य सभी को।

तमिलनाडु में सेना के हेलिकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण भारत के प्रथम CDS जनरल बिपिन रावत जी व उनकी धर्मपत्नी एवं सेना के जवानों के निधन का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। उनका असामयिक निधन देश के लिए अपूरणीय क्षति है।

ईश्वर दिवंगत आत्माओं को अपने श्रीचरणों में स्थान दे।
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                          ॐ शांति 

निःशब्द है राष्ट्र का आज हृदय प्रत्येक।
भावना का सिन्धु ज्वार उमड़ रहा है।।
8 दिसंबर 21 का लोमहर्षक चित्कार। 
दावानल में सब को भस्म कर रहा है।। 
अरे दुर्भाग्य बता तो सही जरा हमारे।
ऐसा भला क्यों क्रूर मजाक करता है।।
अतुल शौर्य,अटूट निष्ठा राष्ट्रभक्ति की।
इतनी कठोर तू काहे परीक्षा लेता है।।
हे ईश्वर तुझसे भी है प्रश्न,अब सत्य बता दे।
दुर्दांत घटना की ऐसी क्यों स्वीकृति देता है???

@नलिनतारकेश

Tuesday, 7 December 2021

गजल-404 : रखो गुलों से ताल्लुक

संग कांटों के खुद ही लहूलुहान होगे।
रखो गुलों से ताल्लुक महक जाओगे।।
वह चाहता जो तुम्हें आता जरूर मिलने। 
यूँ चाहत में सिसकियां कब तलक भरोगे।।
गुलशन,पहाड़,झरने बहुत कुछ है खूबसूरत यहाँ।
देखोगे तुम तभी मगर यार जब नजरिया बदलोगे।।
मिला है जो उसी में तसल्ली रखना सीखो। 
यूँ तो वर्ना तुम हर कदम ही भटकते रहोगे।।
समझे "उस्ताद" अगर जो बेज़ुबां का दर्द। 
निगाहें चार तुम परवरदिगार से कर पाओगे।।

@नलिनतारकेश

Monday, 6 December 2021

गजल: 403- पूरा डेंचर बदलते



किया है इकरारे इश्क जब से ख्वाबों में उसने।
होकर आवारा फकीर सा उसे ढूंढता हूँ तबसे।।

वो रूठता भी है तो बड़ी पाकीज़गी से मुझसे।
यारों का होता ही है लहजा मुख्तलिफ* सबसे।।*अलग सा

सदा से मुतमईन* रहा हूँ उसकी बांकी अदा पर।*निश्चिंत 
निकलेगा मेरा भी दूधिया चांद बादलों को चीरते।।

हर घड़ी,हर शै करता हूँ दीदार बस उसका।  
रंग गहरा चढ़ा है मुझे आशिकी का जबसे।।
 
हैरान हों वो जिनके इश्क में अभी दूधिया दांत टूटे।  
"उस्ताद" हम तो सुकूं से हैं पूरा डेंचर बदलते।।

@नलिनतारकेश 

गजल:402 - मंझे उस्ताद भी--

ना सही जाम,चाय की चुस्कियां ही लीजिए।
कभी साथ बैठ हमारे गुफ़्तगू भी कीजिए।।

वक्त की बेड़ियों में यूँ तो आवाज नहीं होती। 
थोड़ा ही सही मगर दर्द अपना बयां करिए।।

महफिलें तो चलती हैं हवाओं के बहने से।
झरोखों को अपने जरा खुला तो छोड़िए।।

माना है दुनिया में रंज,तकलीफ ही चारों तरफ।
चेहरा आफताबे* रुख भी तो करके जरा देखिए।।*सूर्य 

मंझे "उस्ताद" भी यूँ तो भँवर में डूब जाते हैं।
किनारों में खड़े क्यों भला फिर सिसकियाँ भरिए।।

@नलिनतारकेश

Saturday, 4 December 2021

ग़ज़ल-401- कुर्बान करी है।

जबसे तुझ संग इश्क की बान* लगी है।*आदत
खुद को अपनी एक पहचान मिली है।।

रेशा-रेशा मन ये बिखर गया था।
ऊँची अब जाकर उड़ान भरी है।।

बहके सुर सब सधे दर पर आज तेरे।
इनायते करम खालिस तान लगी है।। 

दिल की गली अब कोई जंचता ही नहीं। 
बगैर तेरे ये तो कब से सुनसान पड़ी है।।

रहा "उस्ताद" कहाँ कुछ भी मेरा अपना।
चाहत थीं जो सारी तुझपे कुर्बान करी है।।

@नलिन तारकेश

Friday, 3 December 2021

गजल: 400-वजूद अब तेरा पैवस्त हो गया है

गजल संख्या : 400
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ऐसा क्या हमसे गुनाह हुआ है।
तूने जो हमसे किनारा किया है।।
चाहने की कसमें तो बहुत खाईं थी तूने।
बता फिर भला क्यों ऐसा सिला दिया है।। 
सदाएं* सुनने को तेरी तरसते हैं अब तो। *आवाज 
वक्त ने जाने ये कब का बदला लिया है।।
अज़िय्यत* तुझे क्या पता जो हमें हो रही।*यातना
तूने मुस्कुरा के तो बस ना ही कहा है।।
तेरी रजा जो भी हो फैसला आखिर तेरा।
वजूद अब तेरा "उस्ताद" पैवस्त* हो गया है।।
*अंदर धंसकर अच्छे से बैठना।

@नलिन तारकेश