Monday, 1 March 2021

गजल- 322 सजदा उसकी चौखट

सजदा उसकी चौखट पर हर रोज करता हूँ।
तब्दील गमों को यूँ ही खुशियों में करता हूँ।।
आईने की तरह खोलता हूँ यूँ तो कलई सबकी।
हाँ खुद को भी नहीं मगर यार बख्शता हूँ।।
जो किया आज या जन्मों पहले मैंने ही कभी।
आ रहा वहीं झोली तो नसीब क्यों रूठता हूँ।।
कहता है खुदा मिलेगी हर शै जो भी चाहोगे तुम।
फिर भला क्यों नहीं उसे ही शिद्दत से चाहता हूँ।।
  जलजला सा मौजों का सुलगता है रूहे समंदर मेरी। 
  निकाल खजाना तभी तो साहिल* "उस्ताद" फेंकता हूँ ।।

*किनारा
नलिन "उस्ताद "

No comments:

Post a Comment