Friday, 19 March 2021

जरूरत है

हर कदम राह जिंदगी की बड़ी ही रपटीली है।
संभल कर तभी तो यहां चलने की जरूरत है।।
देखना स्वप्न तो अच्छा है,खुली या बंद आंख से।
सतत पर मृग-मरीचिका से बचने की जरूरत है।।
सारे के सारे रिश्ते-नाते टिके हैं गुणा-भाग पर केवल।
नाता जो एक अटूट बस उसे ही साधने की जरूरत है।।
सोच तेरी,मेरी हो तो सकती है अलग कभी-कभी।
मनभेद हो न कभी बस ये विचारने की जरूरत है।।
सिंगार तो खूब करते रहे ताउम्र इस नश्वर देह का हम।
अब अजर-अमर इस रूह को संवारने की जरूरत है।।

नलिन "तारकेश"

No comments:

Post a Comment