Tuesday, 2 March 2021

गजल- 323 रोना पड़ेगा

रोना पड़ेगा जार-जार ख्वाबों को सजाने के लिए।
खिलेंगे गुल तभी तो बंजर आशियाने के लिए।। 

पता नहीं है अभी तुम्हें पाला पड़ा है किससे।
करेंगे हम हर हद पार तुम्हें मनाने के लिए।। 

गमों का खजाना है जिनके पास अकूत है।
हैं सजाए वो ही लबे हंसी दिखाने के लिए।।

गुनगुनाता है आफताब* चाँदनी मस्ती में झूमती है। 
जबसे आया है मेरा यार मुझे महकाने के लिए।।
(*सूर्य )

मरने को कहोगे तो मर जायेंगे पूरी तरह से भी।
यूँ मर रहे हैं खुद को महज जिलाने के लिए।।

हर हर्फ* पर मेरे करेंगे दानिशमंद** नुक्ताचीनी**
लिखी है ग़ज़ल बस तुझे ही सुनाने के लिए।।
(* शब्द , ** श्रेष्ठ विद्वान, *** कमियाॅ निकालना)

यूँ नहीं बने "उस्ताद" फकत एक दिन में हम।
बेले हैं पापड़ कैसे-कैसे जमाने के लिए।।

नलिन "उस्ताद "

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