Saturday 27 February 2021

गजल- 321 शिवोहम

आईना जो देखा तो उससे मुलाकात हो गई।
बिना लब हिलाए लो हजार बात हो गई।।
गर्दिशों में बीत रहे थे दिन हमारे एक उम्र से।
मिले उससे तो हर रात पूनम की रात हो गई।
दुनियावी समंदर में आती हैं मौजें डुबोने हमें भी। 
निकल आते हैं हर बार दांव दे ये करामात हो गई।।
देख नादानियां हमारी खुदाई भी हैरां,परेशां थी।
खुशियां तभी शायद बा मेहरबानी खैरात हो गईं।।
चटक धूप बंजर जमीन दर-दर भटके हम उसके लिए। 
मिलेंगे वो बस अगले कदम इसी उम्मीद बारात हो गई।। फाकामस्ती बसती है अब एक अजब ही कैफ़ियत लिए।
हर घड़ी "उस्ताद" की यूं ही नहीं नूरानी सौगात हो गई।।

नलिन "उस्ताद"

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