"लघुकथा" - हाऊ इज द जोश?" मैंने पूछा हाऊ इज द जोश? उसने कहा क्या बताऊं? मैंने कहा जो सच है वह बताओ।तब उसने कड़वा सच कहा - जहां जोश है वहां होश नहीं है जहां होश है वहां जोश नहीं है।मैंने पूछा इसका क्या मतलब? उसने व्यथित हो समझाया :जहां होश है वह वोट देने जाएगा नहीं या नोटा दबा देगा और जहां जोश है वह बेहोश हो कुछ ख्वाब चंद रुपयों/कुछ सहुलियतों की सोच देश को गिरवी रख आएगा।
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Tuesday, 29 January 2019
Friday, 18 January 2019
gazal-89
है वही ठीक जो छका ठीक है
तोड़ना कच्चा फल गुनाह है एक
खाना तू वही जो पका ठीक है है.
यूं हर कोई खानाबदोश साँस ले रहा.
हो रूह जिन्दा तभी जिस्मे-मका ठीक है.
माहौल अभी भी सुधार लो दोस्तों
संग साथ चलना ही सबका ठीक है.
गिरेगा तो रपटा देगा कहीं भी.
पानी एक बूँद कहाँ छलका ठीक है.
वहम के मारोँ का इलाज क्या करोगे.
सुहाता उनको तो बस टोटका ठीक है.
परख कर ही "उस्ताद" बनाओ किसी को .
वरना तो खुद का ही सदक़ा ठीक है.
@नलिन #उस्ताद
Wednesday, 16 January 2019
गजल-88 भीड़ में सभी
भीड़ में सभी दिखते साथ हैं।
कहां वो मगर चलते साथ हैं।।
हर तरफ है यूं मौजों का मेला।
संग कहां इसमें बहते साथ हैं।।
प्यार का रंग इतना गहरा चढा।
दूर रह कर भी हम रहते साथ हैं।।
इस जुनून को सच्ची इबादत कहो।
मुहब्बत जो रोज बिलखते साथ हैं।।
गिला मुझे तुमसे कोई कभी भी ना रहा।
संग फूलों के कांटे तो लगते साथ हैं।।
"उस्ताद"सांस ये चलती है तभी तक।
आशिकाना जब तलक रिश्ते साथ हैं।।
Tuesday, 15 January 2019
सिद्धी मां बाबा नीबकरौली
अप्रतिम अद्भुत अलौकिक दृश्य दृष्टिगोचर हुआ।
अनंत अपार महासिंधु सम्मुख सिंधु ठहरा- ठहरा दिखा।।
नील गगन,नील सागर,नील वसन मानों जैसे एकाकार हुआ।
धरा-धरित्री,सप्तलोकी-हरिप्रिया*श्रीमुख प्रफुल्लित दिखा।।*माताजी
गंगाधर* सम्मुख श्रीलक्ष्मीनारायण**चरण गंगा उद्गम हुआ।* सागर **बाबाजी
रत्नागर*तब अपनी क्षुद्रता विचार व्याकुल मचलता दिखा।।*सागर
अखंड सृष्टि,ब्रह्मांड प्रतिश्वास जिसकी लय चलायमान हुआ।
श्रीमां का सहज,सरल वात्सल्य-रस परिपूर्ण बहता दिखा।।
निहारते स्वयं अपनी ही रचना जाने भीतर क्या मनोभाव छुपा हुआ?
कृपा क्षीर अबोध बालक"नलिन" मुख रचा- बसा बस दिखा।।
@नलिन #तारकेश
Saturday, 12 January 2019
गजल-80 वो तो समंदर की
वो तो समंदर की महज बात करते हैं।
बनके हम सदा ही समंदर विचरते हैं।।
प्यार के अल्फाज क्या कहीं लिखे मिलते हैं। वो तो पर इश्क का भी फॉर्मूला रटते हैं।।
हवा की मुखबरी*से नादां परेशान क्यों। जज्बात से अक्सर सब यूं ही खेलते हैं।।
*जासूसी
तेरे और मेरे बीच का रिश्ता क्या है।
परवाह है भला क्यों जो लोग पूछते हैं।।
तिश्र्नगी* ये ऐसी नहीं जो दुनिया मिटा सके।*प्यास
समझते हैं तभी तो तुझसे प्यार करते हैं।।
आसां नहीं उसके प्यार में डूब के जीना। "उस्ताद"यहां सब मुझे अब बदचलन कहते हैं।।
@नलिन #उस्ताद।
Thursday, 10 January 2019
गजल-78 नूरे खुदा से
नूरे खुदा से रूबरू हो कहता गजल है।
चांद-सितारों ओ कुदरत वो सुनता गजल है।।
रेशम की ताग से महबूब के किस्से।
चरखे में कातता वो दिखता गजल है।।
मासूमियत,इश्क,नेकी,जुनून सब लेकर।
लफ्जों की ड्रिबलिंग से ढालता गजल है।।
दूब में पड़ी ओस कदमों में जा के ठहरी।
महके जब ऐसा सजदा तो बनता गजल है।।
पूनम की रात हो या अमावस का चांद निकले।
हर दिन करीने से वो बेखौफ सहेजता गजल है।।
गैरों के रंजोगम पर बहुत संजीदा है जो।
चाशनी भरने तभी खुशी की घोलता गजल है।।
जिंदगी का मजा तो असल अब आ रहा है।
गुफ्तगू से जब-जब खुद की बुनता गजल है।।
कहां आबे जमजम कहां ये दोजख का पानी।
करम बड़ा"उस्ताद"उसका जो लिखता गजल है।।
@नलिन #उस्ताद
Saturday, 5 January 2019
गजल-73 आंखों से जो पी लिया
आंखों से जो पी लिया छलकता पैमाना।
रहा बन्दगी में उसकी बहता पैमाना।।
बड़े गहरे धंसे जज्बात उभारता पैमाना।
जाने कितना कुछ चुपचाप है सहता पैमाना।।
दिल नहीं अब देखते हैं लोग महज हैसियत। जर*जमीं फर्क नहीं इन्हें पता पैमाना।।*स्वणॆ
मतलब के खयालों से अब चलते हैं दिलो दिमाग।
है रोज जा रहा जज्बात का सिकुड़ता पैमाना।।
इशारों से उसके ही चलते हैं चांद सितारे।
यूं है नहीं कोई सफलता-विफलता पैमाना।।
क्या कोई देगा भला मिसाल "उस्ताद" उसकी।
खुदाई रहमत का कहां कोई बता पैमाना।।
@नलिन #उस्ताद
Friday, 4 January 2019
गजल-72 शमशान वैराग्य
शमशान वैराग्य
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हर पल चिता एक दिल में भी जलती है।
आग अरमानों की जहां धधकती है।।
लो फिर एक और आ गई अर्थी श्मशान में।
मरने वालों की कहां यार कमी रहती है।।
जमाने के साथ ही मरघट भी बदल गया।लोगों को अब यहां खिचरोली*सूझती है।।
*ठिठोली(कुमाऊंनी शब्द)
धुआं-धुआं हर तरफ बस बाकी रह गया। जिंदगी ये नादां महज किवदन्ती है।।
नथुने से एक जान आए दूजे से चली जाए।
खेल कसम से यह क्या अजब-गजब कुदरती है।।
जिस रोशनी में नहाकर सभी पार हो गए।
उम्मीदे लौ वहीं "उस्ताद"को दिखती है।।
@नलिन #उस्ताद
Thursday, 3 January 2019
गजल-71 रात हो तो भी
रात हो तो भी सुबह का जरा माहौल बना लो। गम छुपा खुशी का सुनहरा माहौल बना लो।।
यूं बता देगा तजुर्बा दर्द और खुशी एक है। जीने को जिंदगी तुम खरा माहौल बना लो।।
वो बुरा है तो हुआ करे तुम्हें क्या करना।
बस तुम हवा के साथ लहरा माहौल बना लो।
दुनिया की हकीकत से हो गर जरा भी बावस्ता*।*सम्बद्ध/जुड़े होना
कांटों में भी फूल सा मुसकरा माहौल बना लो।।
छोड़ दुनिया का फलसफा खुद से बतियाया करो।
"उस्ताद"की संगत हरा-भरा माहौल बना लो।।
@नलिन #उस्ताद
Wednesday, 2 January 2019
गजल-70: नकाब उठाकर
नकाब उठा कर जो चेहरा दिखाया उसने। तसव्वुर को हकीकत से यूं मिलाया उसने।।
नासमझ मुझे तो बस जिस्म की समझ थी मगर।
नूर ए रूहानी आंखों से पिलाया उसने।।
तपते रेगिस्तान में बदहवास सा पड़ा था। नेमत से अपनी मुझे आकर जिलाया उसने।।
दर्द,तकलीफ ठहर कर जब-जब नसीब बन गया।
रोते हुए को बना जिंदादिल हंसाया उसने।।
तकदीर जो खुद की ही न पढ़ सका कभी अपनी।
लकीरों को सबकी फिर उससे बंचवाया उसने।।
जिंदगी के कदम जब कभी बने गर्दिशे सफर। पेंचोखम जुल्फ को"उस्ताद"सुलझाया उसने।।