Wednesday, 27 June 2018

गजल-209:अच्छा नहीं लगता

आवाज पीछे से लगाना अच्छा नहीं लगता। तुम हमारे हो ये जताना अच्छा नहीं लगता।।

जिंदगी है जब तलक कुछ तो रहेंगे रंज-ओ- गम।
ये हर-बात मगर रोना तेरा अच्छा नहीं लगता।।

कहना है जो कुछ भी तुम भला मुझसे क्यों नहीं कहते।
गैरों से यूँ मेरी कमियों का चर्चा अच्छा नहीं लगता।।

पाल-पोस जिसने भी तुम्हें इतना बड़ा किया। ऑख उसको ही दिखाना अच्छा नहीं लगता।।

ये अना मेरी खुदा से इतर हाथ फैलाती नहीं।
सो गैरत गर कोई बेचता अच्छा नहीं लगता।।

चप्पे-चप्पे बैठा हो दुश्मन जब घात लगाए।   यूँ सभी से हाथ मिलाना अच्छा नहीं लगता।।

होगा जरूर वो भी गलत आखिर है कोई खुदा नहीं।
"उस्ताद"पर बात-बेबात कोसना अच्छा नहीं लगता।।

@नलिन #उस्ताद

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