Tuesday, 19 June 2018

गजल-216: मैं ना चाहूं उसे

मैं ना चाहूं उसे कभी भी वो कहना चाहता है। अजब है मगर खुद मुझे ना भूलना चाहता है।।

दुआ,बद् दुआ जो करो सोच के किया करो।
तेरी ही सोच से बस ये रब चलना चाहता है।।

कभी पलड़ा झुका गम का तो कभी खुशी का।
मगर वो अनजान सा बस चहकना चाहता है।।

यूँ जिंदगी में हर कदम आते हैं मोड़ कई। फितरत है उसकी जो भटकना चाहता है।।

दिले अजीज जो बना है गुलाब हमारा।
कांटों में दरअसल वो खिलना चाहता है।।

कहां था जाना उसे और वो कहाँ आ गया।
थका"उस्ताद"अब घर लौटना चाहता है।।

@नलिन #उस्ताद

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