Wednesday, 20 June 2018

घन घमंड नभ गरजत घोरा

घन घमंड नभ गरजत घोरा
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नलिन पाण्डे "तारकेश"

जेठ की प्रचंड गर्मी से क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी हलकान हो जाते हैं।भारत के मैदानी इलाकों में तो पारा जैसे इस मौसम में सभी हदों को पार करने को बांवला रहता है।लू और अंधड़ के थपेड़ों से जनजीवन बेहाल हो
त्राहि-माम,त्राहि-माम करने लगता है।अप्रैल मई-जून मुख्यतः ये 3 माह तो काटने मुश्किल हो जाते हैं।दिन लंबे होते हैं और रातें छोटी तो देर रात जब कुछ मौसम सुहाना होने लगता है तब कहीं बिस्तर में जा पांव पसारने की सुध आती है।लेकिन फिर जल्द ही सुबह भुवन भाष्कर की रश्मियां अपनी दस्तक देने लगती हैं।अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो जल्दी ही वह अपनी गर्माहट और उष्णता से हमें बिस्तर छोड़ने पर मजबूर कर देती हैं।

हालांकि गर्मी का ताप कुछ अधिक ही बढ़ने लगता है और वह जीवो के लिए असहनीय हो जाता है तो प्रकृति अपनी ममता उदारता के वशीभूत द्रवित हो जाती है।उसकी करुणा सूरज की किरणों द्वारा अवशोषित हो मेघों में छुपाई गई है अकूत जल राशि को पिघला देती है। और लो पृथ्वी के ये आंचल को भिगो देने के लिए वर्षा की बूंदों की झड़ी झरझराने  लग जाती है। पवन जो कल तक तप्त और मारक लगती थी आज वह शीतल मृदुल थपकी देती है। आकाश में उमड़ घुमड़ गरजते बादलों का स्वर मानों मृदंग और पखावज जैसे वाद्यों का मुकाबला करने लगता है और लगे हाथ इसी बहाने पृथ्वीवासियों का बरखा ऋतु के आगमन पर उसका खैर मकदम करना सा प्रतीत होता है। दादुर मोर पपीहा जैसे जीव तो वर्षा ऋतु के आगमन से प्रसन्न होते ही हैं अन्य पशु पक्षी जीव जंतु भी राहत की सांस लेते हैं।अब ऐसे में मनुष्य के उल्लास की तो बात ही क्या कही जाए। उसने ही तो इंद्र देव से मनुहार की थी हजार मन्नतें मांगी थी कि काले मेघा पानी दे और यह तपन यह गर्मी की भीषणता कुछ कम हो। तो अब जब सावन भादो बरसने लगे तो वो तो उस फुहार से अपने तन मन को भिगो देने को आतुर दिखेगा ही दिखेगा।वह सावन के झूलों में बैठ मदमस्त हवा के पेंगों में उड़ान भर बादलों के कानों में कुछ रसीली मृदुल शरारत भरी कानाफूसी जरूर करना चाहेगा।

फिल्मी दुनिया में तो वर्षा ऋतु को हाथों हाथ लिया जाता है।बिना बरखा की झड़ी लगाए फिल्म की पटकथा बंजर भूमि के सदृश लगती है। निर्देशक निर्माता लेखक दर्शक सभी बिना वर्षा के कुम्हला जाते हैं।खासतौर से जब फिल्मी पटकथा रोमांस को दिखाना चाती हो।यूं बात मुफलिसी की हो दुख की हो या घटना को नाटकीय मोड़ देने कि हो हर जगह दक्ष निर्देशक के लिए बरसात एक नया आईडिया लेकर आती है ।तभी तो बारिश पर आधारित गीतों की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ ज्यादा ही ऊपर है।"बरसात में तुमसे मिले हम सजन तुमसे मिले हम ","सावन के झूले पड़े तुम चले आओ","गरजत बरसत सावन आयो रे","आज मौसम बड़ा बेईमान है","जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात","डम डम डिगा डिगा", "घनन घनन घिर आए बदरा", जैसे ढेरों कणॆप्रिय गाने अपनी तान से सभी को मोहित कर देते हैं। और दर्शकों की आंखों में भी जाने कितने सपनों की बरसात कभी मंद तो कभी गरज-गरज कर बरसने लगती है।

तीक्ष्ण गरमी से अकुलाई पृथ्वी को तो वर्षा की बूंदें अमृत समान लगती हैं।जो उसकी मां प्रकृति अपने स्नेह आंचल से उस पर बरसाती है।नदियों तालाब पोखरों में एक नई रवानगी  एक नई उल्लासित थिरकन पैदा हो जाती है। पेड़-पौधे जो शुष्क  हो औंधे पड़े दिखते थे वोभी वर्षा की संजीवनी से चेतन हो लहराने लगते हैं।  पात-पात कोमल और चिकना हो  बाल शिशु सा  मुस्कान बिखेरने लगता है।पूरी धरती हरी-भरी हो जाती है तभी तो यह कहावत बनी की "सावन के अंधे को हरा-हरा ही सूझता है"।पशुओं को खाने पीने की प्रचुर मात्रा मिलती है तो वह भी हष्ट पुष्ट हो सुडौल हो जाते हैं।अब जब पृथ्वी इस रितु को देख प्रसन्न हो अपना अन्नपूर्णा स्वरूप प्रदर्शित करती है तो मानव को अपना भविष्य भी उज्ज्वल दिखता है क्योंकि वह आश्वस्त हो जाता है कि अच्छी वर्षा खाद्यान्न की कमी नहीं होने देगी।वैसे भी भारत जैसे कृषि प्रधान देश में वर्षा ऋतु का सही समय पर आना और यथोचित मात्रा में होना बड़े वरदान से कम नहीं है।यह जन जन की समृद्धि का प्रतीक है । यह सामान्य कृषक मजदूर से लेकर बड़े बड़े उद्योगपति नेता अधिकारी के चेहरे पर उल्लास की मुहर लगाने की सामर्थ्य रखती है। तभी तो सभी अपने अपने ढंग से इस ऋतु का लुत्फ उठाने को तत्पर दिखते हैं। कहीं गरमा-गरम समोसे,पकोड़ा,कॉफी-चाय की चुस्कियों के साथ दोस्तों की गपशप का सिलसिला तो कहीं झूले की पेंग बढा आकाश को बाहों में भरने की कोशिश तो किसी का लॉन्ग ड्राइव पर निकलना एक अलग माहौल बनाता है  कुछ भीगते हुए छतरियों में संभलकर चलना या
कि छत या आंगन में तेज बौछार में नाचने लगना इन सब का ही तो मस्त नजारा पेश करता है वर्षा ऋतु का आगमन। और अब क्योंकि वर्षा की बहारों का मौसम आने ही वाला है तो आइए अभी से समां बांधने के लिए कमर कस लें और थिरकने के लिए तैयार रहें।मौसम और दस्तूर दोनों ही गलबहियां डाले आपका इंतजार कर रहे हैं।

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