Thursday, 21 June 2018

माॅ

मां के बारे में लिखना संभव कहां पर दिल है कि मानता नहीं। सो उसे बहलाने के जतन तो करने ही पड़ते हैं।यूं यह भावाभिव्यक्ति मेरी मां को श्रद्धा-सुमन स्वरूप है पर यदि यह किसी रूप में मातृत्व के उच्चासन पर आरूढ़ समस्त मातृशक्ति का प्रतिनिधित्व कर सकी  तो मुझे ह्रदय से अत्यंत संतुष्टि मिलेगी।

                श्रद्धा-सुमन
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माॅ के आंचल की नमी भरी छांव लिखूं कैसे। दुनिया में जो लाई मुझे उस पर लिखूं कैसे।।

हर्फ़ दर हर्फ़ तराशता तो हूॅ बहुत सलीके से। कागज रह जाए मगर कोरा बता फिर लिखूं कैसे।।

कायनात भरी है उसके प्यार-दुलार में मर के भी।
कतरा-कतरा करे मेरी देखभाल उसे लिखूं कैसे।।

हर पल साए की तरह मेरे पीछे जो रहती है आस-पास।
थकी कलम से बताओ उसके जज्बे को सलाम लिखूं कैसे।।

गैर था कहां कोई उसके लिए करती थी खूब खातिरदारी।
हाथ में था हुनर जो बेमिसाल उसको भला लिखूं कैसे।।

वो जान लेती थी हर शख्स के भीतर की बेचैनी और दर्द भी।
हर पल फिर उस की अचूक तीमारदारी वो कहो लिखूं कैसे।।

रास्ता देखना बैठ दहलीज पर,देर से अगर कोई आए।
खाने-पीने की सुध कहाॅ फिर अपनी कहो ये ख्याल लिखूं कैसे।।

सूरज को चिराग दिखाना कहां मुमकिन किसी के लिए।
बच्चे की नादानी ये मान भी लूं तो लिखूं कैसे।।

उस्तादी तो रह जाती सारी एक तरफ  "उस्ताद" तेरी।
रूह ए जज़्बात भरा जो उसने नाल में वो लिखूं कैसे।।

@नलिन #उस्ताद

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