Friday, 1 June 2018

गजल-213 :दिल लगा लिया मैंने

उससे जो दिल अपना लगा लिया मैंने।
अजब एक रोग नया लगा लिया मैंने।।

जबसे आंखों में छाई है बिंदास सूरत उसकी। तस्वीर को अपनी दिल से मिटा लिया मैंने।।

क्या पता था हाल होगा इस उम्र में मेरा ऐसा।
छोड़ सब इबादत मयखाना सजा लिया मैंने।।

जलवे सुने थे तब से ही मदहोश था मैं तो।
अब दिल में अपने उसको बसा लिया मैंने।।

भीतर बहा जबसे झरना-ए-मोहब्बत सबकी खातिर।
नलिन एक नाबदान*-ए-जिंदगी खिला लिया मैंने।।*

आँखों में नशातारी दिल में मस्ती जवां है। दीदार-ए-हुस्न जब से है अपना लिया मैंने।।

मशहूर है यूँ बहुत दुनिया में शाम-ए-लखनऊ भी।
रूह में मगर शाम-ए-पेरिस को बसा लिया मैंने।

अब रही ना पर्दादारी उसके मेरे बीच कुछ भी।
जन्नत-ए-दुनिया से नया रिश्ता बना लिया मैंने।।

समझता हूँ मैं इस्तकबाल का सब दस्तूर-ए- जमाना।
एक दौरे बदहाली था जो जी अच्छा-भला लिया मैंने।।

सुबह-शाम अब तो बस नाम का उसके ही चर्चा है।
जबसे आंखों में उसकी खुद को छुपा लिया मैंने।।

हलक से नीचे उतरे नहीं यहाँ की एक बूंद अब तो।
खुदा के हाथ जबसे मीना-ए-जाम चढा लिया मैंने।।

कहता है"उस्ताद"अच्छा भला था मैं तो।
फिर न जाने क्या ये हाल बना लिया मैंने।।

@नलिन #उस्ताद

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