Thursday, 28 June 2018

जुल्फ बिखरी

जुल्फ बिखरी लगती भली हैं लोगों को उसकी।
फुर्सत कहां तकलीफ मगर देखने को उसकी।।

भुलाने को तो उसे भुला दिया ज़माने के लिए। तस्वीर दिल से कभी मिटा ना पाया वो उसकी।।

सरेआम ही लुट रही थी इज्जत मगर देखो।
वहां किसको पड़ी सुने चीख पुकार जो उसकी।।

बदलता है गिरगिट की तरह रंग ये आदमी। पढेगा क्या खाक भला तू सोच को उसकी।।

वो लाख कहे तुझमें मुझमें फर्क नहीं जरा भी।
हरकतें मगर करती हैं जाहिर नफरतों को उसकी।।

"उस्ताद" तुम भी कहां किस जमाने में जी रहे हो।
दिल से भला लगा रहे क्यों अफवाहों को उसकी।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 27 June 2018

तू अपनी

केंचुली उतार दे हर सुबह बीते दिन कि तू अपनी।
हर दिन नई सांस के साथ जी जिंदगी तू अपनी।।

दिल के सागर छुपे हैं नायाब हीरे मोती।
ला दिखा ही दे खोलकर अब झोली तू अपनी।।

खुदा की इनायत जो तुझ पर हर लम्हा बनी हुई।
सुना दे तफसील से किताब-ए-जिंदगी तू अपनी।।

चलता है जब सब कुछ यहाॅ उसकी ही मर्जी।
भला क्यों जोर दे रहा है अकल तू अपनी।।

बहुत ही है शौक काम करने का अगर तुझको।
कमी ना हो देखना बस इबादत में तू अपनी।।

इरादे पक्के और रख के नजर बस एक मंजिल।
हर हाल पकड़ राह अलमस्त चला चल तू अपनी।।

लोग कब से हैं बेकरार देख महफ़िल में आज।
गुनगुना दे जरा "उस्ताद" नई गजल तू अपनी।।

@नलिन #उस्ताद

गजल-209:अच्छा नहीं लगता

आवाज पीछे से लगाना अच्छा नहीं लगता। तुम हमारे हो ये जताना अच्छा नहीं लगता।।

जिंदगी है जब तलक कुछ तो रहेंगे रंज-ओ- गम।
ये हर-बात मगर रोना तेरा अच्छा नहीं लगता।।

कहना है जो कुछ भी तुम भला मुझसे क्यों नहीं कहते।
गैरों से यूँ मेरी कमियों का चर्चा अच्छा नहीं लगता।।

पाल-पोस जिसने भी तुम्हें इतना बड़ा किया। ऑख उसको ही दिखाना अच्छा नहीं लगता।।

ये अना मेरी खुदा से इतर हाथ फैलाती नहीं।
सो गैरत गर कोई बेचता अच्छा नहीं लगता।।

चप्पे-चप्पे बैठा हो दुश्मन जब घात लगाए।   यूँ सभी से हाथ मिलाना अच्छा नहीं लगता।।

होगा जरूर वो भी गलत आखिर है कोई खुदा नहीं।
"उस्ताद"पर बात-बेबात कोसना अच्छा नहीं लगता।।

@नलिन #उस्ताद

Sunday, 24 June 2018

यही सोच कर

कभी किसी मोड़ पर मिल जाओगे यही सोच कर।
हर नए मोड़ पर ठिठक जाता हूं यही सोच कर।।

वो जो मेरा ना हुआ तो होगा किसका।
रहता हूं परेशान दिन रात यही सोचकर।।

जो ठिकाना ही ना होगा तो कहां मैं दरबदर भटकूंगा। 
सजाता हूं सलीके से अपना आशियाना यही सोचकर।।

तुम मेरे दिल अजीज और मैं तुम्हारा हूं मुरीद। आओ मिटा दें सारे अपने झगड़े यही सोचकर।।

वो जहां रहे खुश रहे,आबाद रहे ।
भूल गया मैं उसे बस यही सोचकर।।

मिलता तो है वो मुझे अक्सर पर एक  अजनबी सा।
ना था मंजूर खुदा को, लब सिल लिए यही सोचकर।।

जब दिलों में  है सबके रहता वो ही परवरदिगार।
छोड़ दी "उस्ताद" ने बुत की इबादत यही सोचकर।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 22 June 2018

पारा-पारा दिल हुआ मेरा बेवफाई से तेरी

पारा-पारा दिल हुआ मेरा बेवफाई से तेरी। खबर क्या हमें मिलेगा ये सिला मुहब्बत से तेरी।।

दिल-ए-जज्बात भला एक तेरे ही पास तो नहीं है।
आंख छलकती है मेरी भी तोहमतों से तेरी।।

तूने तो कह दिया,गाकर दर्द भी हल्का कर लिया।
कहूं किससे जो निजात दिलाए बातों से तेरी।।

नकली दुनिया से दिल लगाने की है जरूरत नहीं।
सुलझेगी जिंदगी बस बंदगी,अरदास से तेरी।।

बातों में यूं तो बातें हैं बहुत और नहीं कुछ भी। दरअसल चलता नहीं यहां कुछ भी मर्जी से तेरी।।

तुझे जो है मिली ये जिंदगी खुदा के अहले करम से।
"उस्ताद"छलकनी चाहिए बस मस्ती निगाहों से तेरी।।

@नलिन #उस्ताद

रहो मस्त ग्रीष्म ऋतु में

रहो मस्त ग्रीष्म ऋतु में
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नलिन पाण्डे "तारकेश"

प्रकृति के स्वभाव में परिवर्तन शीलता रची-बसी है।कभी शहर की शीतलता कभी बसंत की अनोखी सुषमा कभी ग्रीष्म का प्रचंड उत्ताप तो कभी वर्षा की मनमोहक बौछार। हमारे देश में तो वैसे भी प्रकृति अपने विविध रंगों की छटाएं लेकर सदा डेरा डाले रहती है अतः जाड़ा गर्मी बरखा बसंत के अलावा भी शरद और हेमंत ऋतु का मौसम हमें देखने को मिलता रहता है।इसमें बंसत तो रितुराज है और सभी को मनभाता है और कुछ हल्की ठन्ड  और हल्की  बरखा का मौसम भी अच्छा लगता है लेकिन ग्रीष्म ऋतु की आहट ही पसीने छुड़ाने लगती है। लेकिन "बिन दुःख के है सुख निस्सार/ बिन आंसू के जीवन भार"इन पंक्तियों का मर्म प्रकृति से बढ़कर भला कौन सिखा सकता है। प्रकृति क्योंकि हमारी मां के समान ही देखभाल करती है सो वह चाहती है कि सुकुमारता की छांव से हटकर हमें कुछ समय कठोर परिस्थितियों में भी तपना चाहिए। सोने को भी तो तपना पड़ता है और तपकर ही वह कुन्दन बन अत्यंत मूल्यवान बन जाता है।

होली का त्योहार जब विदा होता है तो वह कुछ पहले से ग्रीष्म ऋतु की पदचाप सुना देता है तभी तो होली में रंग भरे पानी से तन मन भिगोते हम "बुरा न मानो होली है"कह पाते हैं ।15 अप्रैल से सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में भ्रमण करने लगता है तो धरा पर सीधे पड़ने वाली उसकी किरणों की दीप्ति में प्रबल प्रखरता बढने लगती है। दिन की अवधि लंबी हो जाती है। आप लाख आलस करना चाहो सूर्य देव कान पकड़कर जल्दी उठा ही देते हैं। वैसे भी इस में ही भलाई होती है क्योंकि झटपट उठकर नहाने धोने से ताजगी तो हमें ही आती है।सुकून भी खूब मिलता है।

अब जब आधुनिक विज्ञान का वरदहस्त हम पर कृपा को प्रस्तुत है तो "मौसम की मार" जैसे जुमले बहुत हद तक बेमाने लगते हैं । एसी फ्रिज कूलर जैसे दिन-ब-दिन उन्नत तकनीक से लैस होते उपकरण हमारी ख़िदमत को बाजार में अटे पड़े हैं। यूं यह उपकरण और लग्जरी लाइफस्टाइल का प्रतीक नहीं रहे। अब तो यह जीवन का अटूट हिस्सा बन चुके हैं।अब हमारे घर कूलर एसी से युक्त होते हैं ।ऑफिस जाते हैं तो वहां ऐसी होता है घर से कहीं बाहर निकलते हैं तो कार गर्मी को चिढ़ाती है वही शॉपिंग के लिए मॉल के अंदर घुसते ही स्वर्ग की सी अनुभूति होती है। घन्टों गुजर जाते हैं और मनमाफिक मौसम सदाबहार बन छाया रहता है। सनग्लासेज जिन्हें 1929 के आसपास "सन चीटसॆ"कहा जाता था आज फैशन व आपके लुक के साथ आंखों को भी कूल किए रखते हैं ।अब तो गरमी को पटखनी  देने को शीत प्रदायक वस्त्रों के निर्माण की भी खबर है। कोल्ड ड्रिंक्स आइसक्रीम की अनगिनत
वैराइटी फ्लेवसॆ देख कर तो गर्मी का सा दिलदार मौसम कोई लगता ही नहीं है।

हां यह तो है कि कितनी भी दलीलें दो गर्मी का मौसम है तो सख्त मिजाज ही।जरा सी लापरवाही हुई नहीं खानपान में तो फिर बच्चू खैर नहीं।सो उसके लिए संतुलित आहार पर तो ध्यान देना ही पड़ेगा। सबसे पहले तो पानी की खपत बढ़ानी होगी।यह सबसे सस्ता सरल टौटका है। तीन से चार गिलास नहीं 5से6 गिलास पानी तो पीना ही पड़ेगा। रात 10:00 बजे जागें तो हर एक घंटे में एक गिलास पानी पी सके तो बहुत उम्दा। इससे वात पित्त प्रकोप का भय नहीं होगा शरीर की स्नगधता भी बनी रहेगी।बाजारू शीतल पेय के बजाय घर में ही पुदीना नीबू खीरे का शरबत स्वास्थ्यवर्धक रहता है। गन्ने का रस अधिक गर्मी के कारण उल्टी होने पर शहद के साथ फायदा पहुंचाता है तो पेट हृदय के रोग व पीलिया में लाभ करता है। बेल का रस तो इस दौरान रामबाण है ही ।लेकिन गर्मी के मौसम की खासियत की जब चर्चा हो और फलों के राजा आम की चर्चा न हो तो सब बेमानी है।ग्रीष्म रितुजन्य रुक्षता व दुर्बलता को दूर करने के लिए आम प्रकृति का वरदान है। पका देशी आम मधुर स्निग्ध वायुनाशक बल वीयॆ जठराग्नि व कफवधॆक लौह तत्व व विटामिन ए बी सी डी से भरपूर होता है ।आम चूस कर खाना ज्यादा गुणकारी है। आम का पना दही की लस्सी भी मौसम में फायदेमंद होती है।दलिया चावल की खीर करेले टमाटर की सब्जी खीरा नींबू प्याज के सलाद का सेवन करने से गर्मी  भी खौफ खाती है ।सुबह नाश्ते में पपीता अमरूद अंकुरित अनाज जैसे
  चना मूंग उड़द का सेवन सुपाच्य एवं हल्के होने से कब्जनाशक होता है।हां ज्यादा चटपटी तली एवं मैदे से निर्मित खाद्य सामग्री का सेवन या चाय कॉफी की अधिकता से दूरी बनाए रखनी चाहिए। वैसे भी गरमी में भूख से थोड़ा कम ही खाना चाहिए और खाने के बाद हल्का टहलना अच्छा रहता है।सुबह शाम थोड़ा बहुत हल्का-फुल्का व्यायाम भी हो जाए तो क्या बात है !शरीर में सक्रियता और ताजगी बनी रहेगी ।अब अगर इन बातों पर ध्यान रखते हुए  इस गर्मी भर अमल किया जाए तो कहना ना होगा की पूरी शान और ऊर्जा से लबालब भरे हुए आप ग्रीष्म ऋतु का भरपूर लाभ उठा सकेंगे।

Thursday, 21 June 2018

माॅ

मां के बारे में लिखना संभव कहां पर दिल है कि मानता नहीं। सो उसे बहलाने के जतन तो करने ही पड़ते हैं।यूं यह भावाभिव्यक्ति मेरी मां को श्रद्धा-सुमन स्वरूप है पर यदि यह किसी रूप में मातृत्व के उच्चासन पर आरूढ़ समस्त मातृशक्ति का प्रतिनिधित्व कर सकी  तो मुझे ह्रदय से अत्यंत संतुष्टि मिलेगी।

                श्रद्धा-सुमन
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माॅ के आंचल की नमी भरी छांव लिखूं कैसे। दुनिया में जो लाई मुझे उस पर लिखूं कैसे।।

हर्फ़ दर हर्फ़ तराशता तो हूॅ बहुत सलीके से। कागज रह जाए मगर कोरा बता फिर लिखूं कैसे।।

कायनात भरी है उसके प्यार-दुलार में मर के भी।
कतरा-कतरा करे मेरी देखभाल उसे लिखूं कैसे।।

हर पल साए की तरह मेरे पीछे जो रहती है आस-पास।
थकी कलम से बताओ उसके जज्बे को सलाम लिखूं कैसे।।

गैर था कहां कोई उसके लिए करती थी खूब खातिरदारी।
हाथ में था हुनर जो बेमिसाल उसको भला लिखूं कैसे।।

वो जान लेती थी हर शख्स के भीतर की बेचैनी और दर्द भी।
हर पल फिर उस की अचूक तीमारदारी वो कहो लिखूं कैसे।।

रास्ता देखना बैठ दहलीज पर,देर से अगर कोई आए।
खाने-पीने की सुध कहाॅ फिर अपनी कहो ये ख्याल लिखूं कैसे।।

सूरज को चिराग दिखाना कहां मुमकिन किसी के लिए।
बच्चे की नादानी ये मान भी लूं तो लिखूं कैसे।।

उस्तादी तो रह जाती सारी एक तरफ  "उस्ताद" तेरी।
रूह ए जज़्बात भरा जो उसने नाल में वो लिखूं कैसे।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 20 June 2018

घन घमंड नभ गरजत घोरा

घन घमंड नभ गरजत घोरा
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नलिन पाण्डे "तारकेश"

जेठ की प्रचंड गर्मी से क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी हलकान हो जाते हैं।भारत के मैदानी इलाकों में तो पारा जैसे इस मौसम में सभी हदों को पार करने को बांवला रहता है।लू और अंधड़ के थपेड़ों से जनजीवन बेहाल हो
त्राहि-माम,त्राहि-माम करने लगता है।अप्रैल मई-जून मुख्यतः ये 3 माह तो काटने मुश्किल हो जाते हैं।दिन लंबे होते हैं और रातें छोटी तो देर रात जब कुछ मौसम सुहाना होने लगता है तब कहीं बिस्तर में जा पांव पसारने की सुध आती है।लेकिन फिर जल्द ही सुबह भुवन भाष्कर की रश्मियां अपनी दस्तक देने लगती हैं।अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो जल्दी ही वह अपनी गर्माहट और उष्णता से हमें बिस्तर छोड़ने पर मजबूर कर देती हैं।

हालांकि गर्मी का ताप कुछ अधिक ही बढ़ने लगता है और वह जीवो के लिए असहनीय हो जाता है तो प्रकृति अपनी ममता उदारता के वशीभूत द्रवित हो जाती है।उसकी करुणा सूरज की किरणों द्वारा अवशोषित हो मेघों में छुपाई गई है अकूत जल राशि को पिघला देती है। और लो पृथ्वी के ये आंचल को भिगो देने के लिए वर्षा की बूंदों की झड़ी झरझराने  लग जाती है। पवन जो कल तक तप्त और मारक लगती थी आज वह शीतल मृदुल थपकी देती है। आकाश में उमड़ घुमड़ गरजते बादलों का स्वर मानों मृदंग और पखावज जैसे वाद्यों का मुकाबला करने लगता है और लगे हाथ इसी बहाने पृथ्वीवासियों का बरखा ऋतु के आगमन पर उसका खैर मकदम करना सा प्रतीत होता है। दादुर मोर पपीहा जैसे जीव तो वर्षा ऋतु के आगमन से प्रसन्न होते ही हैं अन्य पशु पक्षी जीव जंतु भी राहत की सांस लेते हैं।अब ऐसे में मनुष्य के उल्लास की तो बात ही क्या कही जाए। उसने ही तो इंद्र देव से मनुहार की थी हजार मन्नतें मांगी थी कि काले मेघा पानी दे और यह तपन यह गर्मी की भीषणता कुछ कम हो। तो अब जब सावन भादो बरसने लगे तो वो तो उस फुहार से अपने तन मन को भिगो देने को आतुर दिखेगा ही दिखेगा।वह सावन के झूलों में बैठ मदमस्त हवा के पेंगों में उड़ान भर बादलों के कानों में कुछ रसीली मृदुल शरारत भरी कानाफूसी जरूर करना चाहेगा।

फिल्मी दुनिया में तो वर्षा ऋतु को हाथों हाथ लिया जाता है।बिना बरखा की झड़ी लगाए फिल्म की पटकथा बंजर भूमि के सदृश लगती है। निर्देशक निर्माता लेखक दर्शक सभी बिना वर्षा के कुम्हला जाते हैं।खासतौर से जब फिल्मी पटकथा रोमांस को दिखाना चाती हो।यूं बात मुफलिसी की हो दुख की हो या घटना को नाटकीय मोड़ देने कि हो हर जगह दक्ष निर्देशक के लिए बरसात एक नया आईडिया लेकर आती है ।तभी तो बारिश पर आधारित गीतों की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ ज्यादा ही ऊपर है।"बरसात में तुमसे मिले हम सजन तुमसे मिले हम ","सावन के झूले पड़े तुम चले आओ","गरजत बरसत सावन आयो रे","आज मौसम बड़ा बेईमान है","जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात","डम डम डिगा डिगा", "घनन घनन घिर आए बदरा", जैसे ढेरों कणॆप्रिय गाने अपनी तान से सभी को मोहित कर देते हैं। और दर्शकों की आंखों में भी जाने कितने सपनों की बरसात कभी मंद तो कभी गरज-गरज कर बरसने लगती है।

तीक्ष्ण गरमी से अकुलाई पृथ्वी को तो वर्षा की बूंदें अमृत समान लगती हैं।जो उसकी मां प्रकृति अपने स्नेह आंचल से उस पर बरसाती है।नदियों तालाब पोखरों में एक नई रवानगी  एक नई उल्लासित थिरकन पैदा हो जाती है। पेड़-पौधे जो शुष्क  हो औंधे पड़े दिखते थे वोभी वर्षा की संजीवनी से चेतन हो लहराने लगते हैं।  पात-पात कोमल और चिकना हो  बाल शिशु सा  मुस्कान बिखेरने लगता है।पूरी धरती हरी-भरी हो जाती है तभी तो यह कहावत बनी की "सावन के अंधे को हरा-हरा ही सूझता है"।पशुओं को खाने पीने की प्रचुर मात्रा मिलती है तो वह भी हष्ट पुष्ट हो सुडौल हो जाते हैं।अब जब पृथ्वी इस रितु को देख प्रसन्न हो अपना अन्नपूर्णा स्वरूप प्रदर्शित करती है तो मानव को अपना भविष्य भी उज्ज्वल दिखता है क्योंकि वह आश्वस्त हो जाता है कि अच्छी वर्षा खाद्यान्न की कमी नहीं होने देगी।वैसे भी भारत जैसे कृषि प्रधान देश में वर्षा ऋतु का सही समय पर आना और यथोचित मात्रा में होना बड़े वरदान से कम नहीं है।यह जन जन की समृद्धि का प्रतीक है । यह सामान्य कृषक मजदूर से लेकर बड़े बड़े उद्योगपति नेता अधिकारी के चेहरे पर उल्लास की मुहर लगाने की सामर्थ्य रखती है। तभी तो सभी अपने अपने ढंग से इस ऋतु का लुत्फ उठाने को तत्पर दिखते हैं। कहीं गरमा-गरम समोसे,पकोड़ा,कॉफी-चाय की चुस्कियों के साथ दोस्तों की गपशप का सिलसिला तो कहीं झूले की पेंग बढा आकाश को बाहों में भरने की कोशिश तो किसी का लॉन्ग ड्राइव पर निकलना एक अलग माहौल बनाता है  कुछ भीगते हुए छतरियों में संभलकर चलना या
कि छत या आंगन में तेज बौछार में नाचने लगना इन सब का ही तो मस्त नजारा पेश करता है वर्षा ऋतु का आगमन। और अब क्योंकि वर्षा की बहारों का मौसम आने ही वाला है तो आइए अभी से समां बांधने के लिए कमर कस लें और थिरकने के लिए तैयार रहें।मौसम और दस्तूर दोनों ही गलबहियां डाले आपका इंतजार कर रहे हैं।

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Tuesday, 19 June 2018

गजल-216: मैं ना चाहूं उसे

मैं ना चाहूं उसे कभी भी वो कहना चाहता है। अजब है मगर खुद मुझे ना भूलना चाहता है।।

दुआ,बद् दुआ जो करो सोच के किया करो।
तेरी ही सोच से बस ये रब चलना चाहता है।।

कभी पलड़ा झुका गम का तो कभी खुशी का।
मगर वो अनजान सा बस चहकना चाहता है।।

यूँ जिंदगी में हर कदम आते हैं मोड़ कई। फितरत है उसकी जो भटकना चाहता है।।

दिले अजीज जो बना है गुलाब हमारा।
कांटों में दरअसल वो खिलना चाहता है।।

कहां था जाना उसे और वो कहाँ आ गया।
थका"उस्ताद"अब घर लौटना चाहता है।।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 18 June 2018

मैं तो चुपचाप बस

मैं तो चुपचाप बस उसका करम देख रहा था। कतरा-कतरा वो मुझे पाक साफ कर रहा था।।

यूं लगना तो था वक्त बहुत,ऐब जो था।
श्रद्धा-सबूरी मगर वो सब दे रहा था।।

माॅ कराती है गोशल(स्नान)अपने बच्चे को जैसे।
प्यार से,तो कभी थप्पड़ से वो रगड़ रहा था।।

मुझे भी था इत्मीनान,बस कभी थोड़ी सी चीख-पुकार।
देख के बढता नूर,वरना मैं तो खुश हो रहा था।।

किरदार उसका सा दरअसल है कहां जमाने में कोई।
माशूक "उस्ताद" का फिर वो तो एक जमाने से रहा था।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 15 June 2018

बरसन लागी रस फुहार

बरसन लागी रस फुहार।
मेरे घर आंगन के द्वार।।
झूम-झूम मैं नाच रही।
राग मेघ-मल्हार।।
संग पिया मेरे अलबेले।
करते प्रेम इजहार।।
गरज-गरज बादल बरसे। 
प्यार तो छाया सकल संसार।।
नई छटा है,नया रंग है।
छाया नया  खुमार।।
बहुत दिनन पिया मिले हैं।
सखी,करने दे अभिसार।।
अभी-अभी तो आए हैं।
ना जाएं कर ऐसा उपचार।।
प्रीत का रोग है ही ऐसा।
लागे जाको,हो जाए बेकार।।
मैं तो फिर श्यामा बदरी।
बरसन को तैयार।।
श्याम पिया जब आ ही गए।
सजने ,दे रास-रंग दरबार।।
नलिन,नलिन-दल सेज सजा दे।
करने मधु-यामिनी श्रृंगार।।

@नलिन #उस्ताद

Thursday, 14 June 2018

राम जानते हैं

मेरी हकीकत तो बस चंद ही जानते हैं।
आलिम,काबिल हूं कुछ नहीं राम जानते हैं।।

मीडिया ने सिखा दिया है हुनर सबको।
अब तो सब खुद को बेचना जानते हैं।।

जैसा लिखाया वैसा ही लिख दिया हमने।
यूॅ कुपढ* खुद को सुखनफहम*मानते हैं।।

*अनपढ  *विद्धान

जाते हैं रास्ते सारे एक ही मंजिल पर।
लोग जानते हुए भी मगर कहाॅ मानते हैं।।

सोना,चांदी कीमती असबाब तौलते रहे जो दिन भर।
कहां वो भी कीमत इंसानियत की लगाना जानते हैं।।

प्यार का मयखाना छलकता है जिनके दिलों में।
खुदा की खुदाई तो वो ही असल जानते हैं।।

खुद ही जोड़कर तख़ल्लुस "उस्ताद" का देखो।
बेहया वो तो बस अपना नाम चाहते हैं।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 13 June 2018

छलक-छलक जा रहे जज्बात

छलक-छलक जा रहे जज्बात दिले पैमाने से मेरे आज।
चर्चा है बहुत आ रहे मुझसे मिलने सरकार मेरे आज।।

ये कहूंगा,वो कहूंगा,क्या कहूंगा बस यही सब दिन-रात।
गूंजता है दिल में यही और कुछ नहीं सूझता मेरे आज।।

गम में तो खूब शरीक किया कभी करेगा खुशी में भी क्या?
जेहन में आया कहां से ये सलीका जो दिखा तेरे आज।।

तेरे नाम का चिराग जला था जो इंतजार में। बुझ गया आखिर थक के वो भी दिल में मेरे आज।।

जाने कैसे किसी की नजर लग गई कसम से। थोड़ा रूठे से लगे मुझसे वो मेरे आज।।

माना नजूमी* है नामी,जाने सबके दिल का हाल। *ज्योतिषी
बता तू भी तो "उस्ताद" क्या है दिल में तेरे आज।।

@नलिन #उस्ताद

गजल-220:सहज और सरल होना आसान नहीं है

सहज और सरल होना आसान नहीं है।
जीवन भी असल जीना आसान नहीं है।।

राह में हरेक मिलते हैं फूल भी और शूल भी।।
बच के असर से निकल जाना आसान नहीं है।।

संस्कारों का मिला हो अगर खूब खाद-पानी।
बच्चों का तब बिगड़ पाना आसान नहीं है।।

यूँ तो मिलता है वो सबसे हीबड़े एहतराम से।
उसको समझना मगर इतना आसान नहीं है।।

सुनते रहे हैं तेरी,अब कुछ तू हमारी भी सुन ले। 
यूॅ लगाम जुबां को लगा सकना आसान नहीं है।।

सर के बल दौड़ते रहना पूरी शिद्दत से जिंदगी भर।
फन ये सीखना बगैर किए कोई गिला आसान नहीं है।।

चंद पेशगी का सहारा,खुशी पर अपनी जो हुजूर लुटाते रहे।
वरना बदौलते कलम दो जून रोटी जुटाना आसान नहीं है।।

तल्ख हो मौसम सियासत का धरम-जाति के नाम जब।
"उस्ताद" सौगाते प्यार तब बांटना आसान नहीं है।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 12 June 2018

उसका दिल रखने के लिए

पी थी शराब मैंने उस दिन उसका दिल रखने के लिए।
फर्क है नहीं क्योंकि जहर और आबेहयात मेरे लिए।।

देखी है हमने भी दुनिया,बाल धूप में नहीं सफेद किए हैं।
सब तुम ही कहते रहोगे या रखोगे माद्दा सुनने के लिए।।

खामियाॅ ना रह जाएं एक भी आओ हम कुछ ऐसा करें।
आते हैं बस लोग दुनिया में किरदार निभाने के लिए ।।

सजना संवरना यूं तो है बेकार सब फिजूल बेमानी सा।
मगर बुलबुले में कुछ रंग चाहिए खुद का दिल बहलाने के लिए।।

एक दौर ऐसा भी आता है जिंदगी में "उस्ताद" देखो।
छोड़ना पड़ता है वो सब जो ताउम्र संजोया अपने लिए।।

@नलिन #उस्ताद

Saturday, 9 June 2018

गजल-211 किसे अच्छी नहीं लगती

पहली फुहार मानसून की किसे अच्छी नहीं लगती।
महबूब की बातें रसीली किसे अच्छी नहीं लगती।।

दिल में वीणा के तारों सी बजती हैं बूंदे जब प्यार की।
भला बेसुरी बोली भी उसकी किसे अच्छी नहीं लगती।।

आएंगे अच्छे दिन,मिट जाएगा मुफलिसी का  दौर ये।
बात हो चाहे झूठी सही,किसे अच्छी नहीं लगती।

समझ आती नहीं,मगर कहो तो दिल में हाथ रख कर।
बातें ये बच्चों की तोतली किसे अच्छी नहीं लगतीं।।

जी-तोड़ मेहनत से कमाई हो अगर थोड़ी भी दौलत।
ये लाख दरजे की अमीरी किसे अच्छी नहीं लगती।।

खुद में सिमट अपने खो दिए हों जब यार सब।
बिन कहे मदद मिलती किसे अच्छी नहीं लगती।

करम हो खुदा का है जैसा"उस्ताद"पर। जिंदगी भला ऐसी किसे अच्छी नहीं लगती।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 8 June 2018

218- गजलः सवाल पूछो तो

सवाल पूछो तो जवाब कहाँ वो देनाचाहता है।
उल्टे जवाब का हर सवाल माँगना चाहता है।।

नूरा-कुश्ती सी हैं,यूँ आज कल की बहसें।
बस गोली ना चलें,देश ये इतना चाहता है।।

जरूरी नहीं ये नेता बदलने का देश बीड़ा उठाएं।
आवाम तो अब उनको  ही बदलना चाहता है।।

बहुत दिन हुए उसे इत्र में डूबा ख़त भेजे हुए।
मिले जवाब महबूब का वो इतना चाहता है।।

हसरतें बहुत थीं उसकी मगर सभी अधूरी रहीं।
कयामत के दिन वो हिसाब सबका चाहता है।।

चारों तरफ फैला है बहुत तिलिस्म उसकी कायनात में।
देखना हटा के नकाब उसे वो बेपरदा चाहता है।।

बड़ा एहसान सा करता है"उस्ताद"लिखकर हर दिन गजल।
अल्फाजे दौलत वो उसकी खातिर  लुटाना चाहता है।।

@नलिन #उस्ताद

Thursday, 7 June 2018

जाने क्यों वो इतना

जाने क्यों वो इतना हर वक्त बेचैन रहता है।
यूॅ जबकि कहता है हर काम मेरा खुदा करता है।।

यूॅ ऐसे भी है जो करते हैं हर काम अपने हिसाब से।
पर कहने को कहें,कहां उसके बगैर पत्ता  खटकता है।।

दकियानूसी बता मां-बाप को झिड़कता रहा जो।
आज एक उम्र मैं वो खुद भी वही काम करता है।।

मंदिर,मस्जिद,चर्च,गुरुद्वारा जाना तो सब में ठीक है।
मगर भिखमंगा जो बाहर उसमें भी खुदा रहता है।।

दलित,मुफलिसों के घर अपना जूठन गिराना आजकल।
मुहब्बत नहीं असल मकसद तो कुछ और रहता है।।

चाहे करता हो लाख तदबीर का बखान "उस्ताद" ।
वो जानता है हर हौंसला रब ही दिया करता है।।

@नलिन #उस्ताद