Saturday, 9 September 2017

नयी नस्ल को

अक्सर सांपों को हमने,दूध पिला कर देखा है
ये जज्बा भी हमने,खूब निभा कर देखा है।
लेकिन आंखिर कब तक,हमने क्या कुछ सोचा है
इन नमक-हरामों के चलते,क्या कुछ न खोया है।
बहुत हुयी इनकी गद्दारी,अब तो दंड ही देना है
आहुति जनमेजय बनकर,यज्ञकुंड बलि देना है।
अब समूल विषग्रंथि को,नष्ट सदा को करना है
न हो ऐसा षडयंत्र कभी,हमें कमर को कसना है।
वतन,झन्डा और संविधान सबसे ऊपर रखना है
नयी नस्ल को हमने अपनी,जागरूक ही रखना है।

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