Wednesday, 6 September 2017

गजल-98 उस्ताद का शगल हो गया

कूड़े का अम्बार हर तरफ पहाड़ हो गया।
तरक्की का ये बेढब हाल उजाड़ हो गया।।

दो कदम चलना पैदल अब दूभर हो रहा।
भरी जवानी हर शख्स यहाॅ हाड़ हो गया।।

बन्दगी,इबादत का चलन होना था जहाॅ पर।
डेरा वो अस्मत का लूटेरा झाड़ हो गया।।

आसमाॅ सी बुलन्दी तुम्हें जिसने अता की।
वतन अब वही क्यों तेरा खिलवाड़  हो गया।।

कहना ना कहना बेबाक सब तो कहा हर वक्त तूने।
जुबाॅ पर ताला,क्यों तकिया कलाम अब आड़ हो गया।।

खुद फाड़ता कुरता अच्छा भला अपने ही हाथ से।
थोपना गैर पर इल्जाम फैशन ये बाढ हो गया।।

घर फूंक तमाशा देखना समाजवाद  बना।
"उस्ताद"शगल इनका अब छेड़छाड़ हो गया।।

@नलिन #उस्ताद

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