Saturday, 30 September 2017

जाने वाले तो चले जाते हैं बेहाल छोड़ के

जाने वाले तो चले जाते हैं बेहाल छोड़ के
जाएँ कहाँ मगर हम उनकी याद छोड़ के।

दूर-दूर तक पसरा सन्नाटा आज चारों तरफ
दिखता नहीं कुछ भी यहाँ तो अँधेरा छोड़ के। 

गम और ख़ुशी तो खेल बस परवरदिगार का
उलझे रहते ता-उम्र मगर हम होश छोड़ के।

पिलाओ दूध चाहे कितना भी तुम सांप को
बाज़ कहाँ आता मगर वो डसना छोड़ के।

दो लाख टाॅफी,खिलौना बच्चे के हाथ में
आता कहाँ वो माँ-बाप का पल्लू छोड़ के।

कौन कब किसका हुआ यहाँ भला धूप छाँव में
"उस्ताद"हर शख्श कमज़र्फ खुदा को छोड़ के।      

Thursday, 28 September 2017

कहता हूँ समेटो न सोच में

कहता हूँ  समेटो न सोच में अपनी मुझे
आवारगी खुद न समझ आती अपनी मुझे।

समंदर सा गहरा आकाश सा फैला हुआ हूँ
जर्रे जर्रे में दिखती है तस्वीर अपनी मुझे।

जीना मरना होंगी जरूर तुम्हारे लिए बातें बड़ी
लहरों की तरह कहाँ रही परवाह अपनी मुझे।

उड़ते परिंदों से आसमां को भला कैसी जलन
लबों पे सबके मुस्कान लगती है अपनी मुझे।

कुछ की कुछ बताएं बात बेवजह लोग सारे
जो बात है दिल में कह दो सारी अपनी मुझे।

सुरखाब  के पर लगे भी हों तो कहो क्या करें
ये दुनिया "उस्ताद" कभी लगी न अपनी मुझे।      

ऐसी लगन लगी अब तो हमें बस उनकी

ऐसी लगन लगी अब तो हमें बस उनकी
हर शै में दिखती अब तस्वीर बस उनकी।

वो आयेंगे क्या मिलने हमसे बेपर्दा कभी
दिल में जलती ये उम्मीदे लौ बस उनकी।

बहुत दूर जाएं क्यों दीदार को भला कहो हम
दिले आईने जब दिखती तस्वीर बस उनकी।

कायनात सारी पलकें बिछाने लगी हमारे लिए
शागिर्दी का लो दिखने लगा असर अब उनकी।

दुनिया जहाँ से अजब किरदार हमनशीं का
मिसाल कहो क्या दें हम भला अब उनकी।

रूठे दुनिया हमसे तो रूठे हमारी बला से
हमें तो है "उस्ताद"एक परवाह बस उनकी।     

Wednesday, 27 September 2017

वो जैसा है

वो जैसा है वैसा ही बिन्दास रहता है
इस दौर में भी बिना नकाब रहता है।

हिन्दी उर्दू की गलबहियाॅ हैं खूब कहो 
बहनों का प्यार भी कहाँ मिटा करता है।

चिराग नए जला लो बुजुर्ग शमा से
तजुर्बा उनका विरासत बचा सकता है।

बच्चे सा मासूम पूरी शिद्दत से जो रहे
हिफाजत खुद उनकी खुदा करता है।

रूह में उतर जो हमें तालिम देता है
सदियों ऐसा "उस्ताद" याद रहता है।

Tuesday, 26 September 2017

गजल-67: प्यार भरी एक गजल

प्यार भरी गजल जब हमने आज लिख दी।
चुनौती कठमुल्लों को बड़े नाज लिख दी।।

शबनम,फूल,झील और रंग ढेर सारे।
लो कायनाते इबारत आवाज लिख दी।।

होना नजूमी*भारी पड़ा उसकी जिन्दगी पर।
कच्चा-चिठ्ठा खोलती किताब दगाबाज लिख दी।।*ज्योतिषी

इश्क और मुश्क में भला कहो गलत-सही क्या।
देर ही सही उस पर गजल हो नाराज लिख दी।।

इशारों-इशारों जो बात उनसे होने लगी।
मुहब्बत की बात खुलेआम छोड़ लाज लिख दी।।

चलाता है सारी दुनिया का कारोबार जो।
वसीयत उसे"उस्ताद"अपने अंदाज लिख दी।

Monday, 25 September 2017

इजाजत हो तो

इजाजत हो तो प्यार का पैगाम भेज दूं
तुम्हारे प्यारे नाम अपना इकरार भेज दूॅ।

दीवाना हुआ तुम्हारा जबसे देखा तुम्हें
हो न एतराज तो अपना दिल भेज दूॅ।

सफर अकेला ये कटता नहीं अब तो
बहारों को कहो तो तुम्हारा पता भेज दूॅ।

तेरे अंदाजे बयाॅ का भला क्या मुकाबला
फिर भी कहे तो अपनी तसनीफ* भेज दूॅ।(साहित्यिक रचना)

तुम भी किसी "उस्ताद" से कम तो नहीं
इस खिदमतगार को चाहो तो घर भेज दूॅ।

Friday, 22 September 2017

कभी बरसात में

कभी बरसात में भीगना चाहिए
बरसाती को घर छोड़ना चाहिए।

मौसम भी बाॅवला हो सकता है कभी
खालिक* को कभी न भूलना चाहिए।(सृष्टि रचेता)

भटक सकता कभी भी कोई डगर
आईना न मगर तोड़ना चाहिए।

आलिम* भी नादानी कर जाते कभी (बुद्धिजीवी)
मौजूॅ# हर सवाल तो पूछना चाहिए।

गुनाह क्या और है क्या सवाब#(पुण्य)
दिल में उतर देखना चाहिए।

रूठो चाहे दुनिया से लाख मगर
खुद से"उस्ताद"बोलना चाहिए।

Wednesday, 20 September 2017

हर दिन

हर दिन लिख हूॅ रहा नयी गजल
दिले जज्बात उकेरती गहरी गजल।

वो ऑखों में कहाॅ समा पाता मगर
याद कर कुछ बयाॅ करती गजल।

मंदिर,मस्जिद ढूढते हैं उसे अक्सर
पता उसका बताती मेरी गजल।

श्रद्धा,सबूरी से करे जो भी सजदा
इनायत,करम उसे दिलाती गजल।

"उस्ताद"दूर जाने की नहीं जरूरत
दिलों में रौशनी जगाती गजल।

Monday, 18 September 2017

अब वो भी

अब वो भी झूठ,लफ्फाजी का पैरोकार बन रहा है
ऑखिर नापाक हाथ का नमक रोज खाता रहा है।

ऑखों में उसकी सियार का बाल दिखता रहा है
इंसानियत का राग तो उसका बस एक शोशा रहा है।

यूं गड़े मुरदों को उखाड़ने का शौक जरा भी नहीं
मगर खुलेआम वो गुनाहों को अपने छुपाता रहा है।

कमॆ यज्ञ में आहुति तो चाहता है लीडर सभी की
चैम्बर में अकेला मगर चुपचाप नोट गिनता रहा है।

ठन्डा,लिजलिजा हाथ बढाता है वो मिलाने के लिए
जाने कैसा दस्तूरे ए दोस्ती का साथ निभा रहा है।

"उस्ताद" छोड़ो भी अपने जमाने के रुहानी किस्से
अब तो बेशमॆ चलन अय्याशी का आम डेरा रहा है।

तेरी गली में

तेरी गली में मेरी मुहब्बत के होते आम चरचे हैं
मेरी गली में तेरी बेवफाई के होते खूब चरचे हैं।

हाथ अंगुली काट शहीदों में नाम लिखा तो लिया
मगर गुनाहों के आज तेरे हर तरफ चरचे हैं।

जिसने रंग बेशुमार भर दिए इस जिन्दगी में
लबों पर उस परवरदिगार के हर रोज चरचे हैं।

बच्चे सा मासूम जिगर लिए जो फिरते हैं हर गली
कयामत तक गूंजते ऐसे फकीरों के हर रोज चरचे हैं।

घर के जोगी तुम भी निकले फकत "उस्ताद"
वरना तो दुनिया जहाॅ में तेरे ही नाम के चरचे हैं।

Friday, 15 September 2017

हम भी तेरे शहर के बाशिन्दे रहे हैं

हम भी तेरे शहर के बाशिन्दे रहे हैं
ये अलग बात अभी तक तन्हां रहे हैं।
चुप रहने से आवाज खो गयी हमारी
इशारों से समझें पर कितने रहे हैं।
आसमाॅ तक फैले,सागर से गहरे
किस्से तुम्हारे खूब मिलते रहे हैं।
बहुत दूर की लाए कौड़ी"उस्ताद"
पर डिजिटलअब रिश्ते हो रहे हैं।

हर दिन महफिल सजने लगी है

भीतर जबसे लौ उसकी लगी है
गणेश-परिक्रमा कम होने लगी है।
हर तरफ दिखने लगा है वो ही
इश्क की शुरूआत होने लगी है।
दिल में मासूमियत हो जिसके
कदर उसकी बढने लगी है।
गुजरे जो दिन राजी-खुशी से
समझो कोई नेकी लगी है।
जबसे"उस्ताद" की संगत रहे
हर दिन महफिल सजने लगी है।

Wednesday, 13 September 2017

काबिल उस्ताद होना अब आसान नहीं

हिन्दी का कमॆकाण्ड तो हर साल हो रहा
बाजार अंग्रेजी का मगर बम-बम हो रहा।
गिटपिटाना नवजात घुट्टी में पी रहे सभी
मादरे-जुबां हिकारत भरा नाम हो रहा।
बुद्धिजीवी हर कोई बिकने लगे अब तो
जाने कैसी आजादी का सवाल हो रहा।
जीते जी माॅ-बाप को पानी न दे सके जो
स्वाथॆ के चलते उनके घर श्राद्ध हो रहा।
मासूम के साथ दरिन्दगी कैसे लिखें कहो
पत्थर दिल कलेजा कितना आम हो रहा।
काबिल"उस्ताद" होना अब आसान नहीं
आरक्षित हर गधे का सम्मान आम हो रहा।



Tuesday, 12 September 2017

नयी रामलीला

भुजाओं का बल दिखा जब लंकेश बन जाता है वो।
पीयूष अपने ज्ञान का स्वयं ही सुखाता है वो।।

वाहवाही,चाटुकारिता से उसे कहाॅ फुसॆत भला।
कब्र खुद की खोद रहा जाने नहीं बेचारा है वो।।

कहो कौन किसका सहारा बना दुनिया में आज तक।
अपना उल्लू सीधा करने बस बरगलाता है वो।।

बाॅध आॅख में पट्टी,आरोप लगाता फिर रहा।
खुद विषबेल सींच,आम की जड़ कटवाता है वो।।

तारकेश भगवा,साम्प्रदायिक लफ्ज बता रहा है वो।
कलाम सेक्यूलर"उस्ताद"का चाव से सुनाता है वो।।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 11 September 2017

जानता हूॅ

वो बेवफा है जानता हूॅ मगर
याद में उसकी लिख रहा हूॅ मगर।
हर तरफ राह में अंधेरा छाया हुआ
उजालों का तलबगार रहा हूॅ मगर।
किनारे नहीं मिलते मूंगा,मोती कभी
डूब कर गहरे लाया हूॅ मगर।
प्यार पाना चाहते सभी पर देते नहीं
लूटा प्यार भरपूर पाता हूॅ मगर।
खुद से मुलाकात कराये जो"उस्ताद"
चेला ऐसा तकदीर से बना हूॅ मगर।

Sunday, 10 September 2017

"उस्ताद"क्या सोच लिख रहे हो कलाम

घर के भीतर दहलीज कई बन  गयी
लखन,राम की अलग रसोई हो गयी।
बूढ़े माँ बाप का सहारा अगला बने
भाइयो में हर रोज़ ये जंग हो गयी।
जाने कितने सपने संजोये थे आँख ने
शर्म से हकीकत मगर तार-तार हो गयी।
रुपये पैसे की हवस हद से इतनी बढ़ी
ज़मीर की अब सरेआम मौत हो गयी।
"उस्ताद"क्या सोच लिख रहे कलाम
हमाम में सब नंगों सी हालत हो गयी।      

Saturday, 9 September 2017

अपनी कस्तूरी को भी कभी

देह हो बीमार तो थोड़ा यत्न कर लेना चाहिए
मन को मगर खुशहाल हर हाल रखना चाहिए
मुमकिन वो रहा हो परेशान अपने हालात से
दिल में उसके उतर थोड़ा देख लेना चाहिए।
तुम भी मुसाफिर हम भी वही एक राह में
प्यार और प्यार को बस लूटाना चाहिए।
उसकी रहमत का कोई पार कहाॅ पा सके भला
नाएतबारी छोड़ उससे बस दिल लगाना चाहिए।
उड़ती चिड़िया के पर गिन लेते हो "उस्ताद"तुम
अपनी कस्तूरी को भी कभी खोज लेना चाहिए।

नयी नस्ल को

अक्सर सांपों को हमने,दूध पिला कर देखा है
ये जज्बा भी हमने,खूब निभा कर देखा है।
लेकिन आंखिर कब तक,हमने क्या कुछ सोचा है
इन नमक-हरामों के चलते,क्या कुछ न खोया है।
बहुत हुयी इनकी गद्दारी,अब तो दंड ही देना है
आहुति जनमेजय बनकर,यज्ञकुंड बलि देना है।
अब समूल विषग्रंथि को,नष्ट सदा को करना है
न हो ऐसा षडयंत्र कभी,हमें कमर को कसना है।
वतन,झन्डा और संविधान सबसे ऊपर रखना है
नयी नस्ल को हमने अपनी,जागरूक ही रखना है।

Thursday, 7 September 2017

करते हैं श्राद्ध हम बस भाव से

पितरों की स्मृति को नमन है भाव से
कृतज्ञता चरणों में रखते हम भाव से।
जो भी हैं हम आज इस संसार में
मात्र आपकी कृपादृष्टि के भाव से।
संस्कार,आदशॆ जो कुछ दिया आपने
चाहते उसको बढाना बस भाव से।
जौं,तिल,जल तो मात्र प्रतीक हैं
आप तो हैं प्रसन्न होते भाव से।
भूखा न जाए कोई दहलीज से
आस हमसे यही रखते भाव से।
मिलेगा प्रतिफल,नहीं है ध्यान में
करते हैं श्राद्ध हम बस भाव से।
पीढी दर पीढी चलता रहे ये सिलसिला
प्रभू को मनाते यही हम दिव्य भाव से।

Wednesday, 6 September 2017

गजल-98 उस्ताद का शगल हो गया

कूड़े का अम्बार हर तरफ पहाड़ हो गया।
तरक्की का ये बेढब हाल उजाड़ हो गया।।

दो कदम चलना पैदल अब दूभर हो रहा।
भरी जवानी हर शख्स यहाॅ हाड़ हो गया।।

बन्दगी,इबादत का चलन होना था जहाॅ पर।
डेरा वो अस्मत का लूटेरा झाड़ हो गया।।

आसमाॅ सी बुलन्दी तुम्हें जिसने अता की।
वतन अब वही क्यों तेरा खिलवाड़  हो गया।।

कहना ना कहना बेबाक सब तो कहा हर वक्त तूने।
जुबाॅ पर ताला,क्यों तकिया कलाम अब आड़ हो गया।।

खुद फाड़ता कुरता अच्छा भला अपने ही हाथ से।
थोपना गैर पर इल्जाम फैशन ये बाढ हो गया।।

घर फूंक तमाशा देखना समाजवाद  बना।
"उस्ताद"शगल इनका अब छेड़छाड़ हो गया।।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 4 September 2017

गजल-97 लगन "उस्ताद" अब ऐसी लगी है

नजर रोज उनसे मिलने लगी है।
गजल खुद ब खुद ही रिसने लगी है।।
चांद,तारे,हवा,फूल,आसमां।
कायनात अपनी लगने लगी है।।
दोजख भरी जिन्दगी अब तो।
हसीन बहुत दिखने लगी है।।
लफ्ज मौन,खामोशियां बोल रहीं।
दिलों की धड़कन मचलने लगी है।।
आंखों में नशा,दिल में है मस्ती।
लगन"उस्ताद"अब ऐसी लगी है।।

@नलिन #उस्ताद