Friday 30 August 2024

६८६: ग़ज़ल: वो है मेरा तो

वो है मेरा तो अपना कहने में झिझक क्यों रहा भला मान।
साफ़गोई से इश्क में कहिए कब कम हुई किसी की शान।।

हमारे खैरमकदम में कमी तो उसकी तरफ से ज़रा न थी।
सौंधी महक ही घर की मीलों से कर रही आने का एलान।।

सफर में चले हैं जब हम अपने घर की तरफ रुख करके।
दिल बल्लियों उछलने लगा है खुशी से हकीकत ये जान।।

ख्वाब हुए हकीकत में आज पूरे जितने भी थे इन्द्रधनुषी।
भरकर उसे बाहों में नीले आसमां जब भरी ऊंची उड़ान।।

पढ़ तो सकता है"उस्ताद"नजूमी आने वाले कल का हाल।
हालात मगर कभी खोलने से रोकते हैं उसे अपनी ज़ुबान।

नलिन "उस्ताद


Thursday 29 August 2024

६८५: ग़ज़ल: जब जाते हैं बाजार तो खुद को बेचते,खरीदते हैं हम

जब जाते हैं बाजार तो खुद को बेचते,खरीदते हैं हम। 
जाकर वहीं मंदिर खुद को उसके हवाले करते हैं हम।।

ये कैसा नया समाज बनाने में आजकल लगे हैं हम। 
रईसी तो बढ़ी है मगर दिमाग से पैदल हो रहे हैं हम।।

शहर-शहर,बेदर्द हो ग़लत नज़र से देखते हैं औरत को।
देवी की तरह यूं उसे पूजने का बड़ा ढोल पीटते हैं हम।।

जाने कब बचपन से जवानी और बुढ़ापे की तरफ आ गए।
गुरूर ऐसा,जैसे चांद-तारे सब बस में अपने रखते हैं हम।।

कहा तो उसे "उस्ताद" मगर सुनी कहां उसकी ज़रा भी है।
असल रोना है ये,फिर चाहे बाद में बहुत पछताते हैं हम।।


नलिन "उस्ताद"

Wednesday 28 August 2024

६८४: ग़ज़ल: फूल बन गए कांटे जहरीले जो उनकी बेकद्री हुई

फूल बन गए कांटे जहरीले जो उनकी बेकद्री हुई। 
बेसुरे गाते सुरमई जब-जब हौसला अफजाई हुई।।

सुबह-सुबह मुझे उससे मिलकर ये लग रहा जैसे।
रात-भर वो पूरी किसी की याद में रही रोती हुई।।

सुहाने मौसम में मिल जाए जो कोई हमनशीन भी।
किस्मत है मेहरबां बात जो हक़ीक़त ए ज़मीनी हुई।।

जाने किस मिट्टी की बनी थी ये समझ आया नहीं।
घर‌ लगी‌ थी आग‌ पर वो दिखी खिलखिलाती हुई।।

खिली है धूप एक तरफ और बरसात भी मस्त हो रही।
कौन कहता है भला एक म्यान में दो तलवार नहीं हुई।।

जन्नत है उसके आस्ताने में यह बात तय मान लो मेरी।
जिसने जो भी मांगा दिल से उसकी मन्नत है पूरी हुई।।

इश्क में किसी का साथ मिले या‌ ना भी मिल पाए अगर।
"उस्ताद"इसकी तो है नाकामी में भी कामयाबी छुपी हुई।।


नलिन "उस्ताद"