Friday, 20 January 2023

507:ग़ज़ल:: गालिब मीर न हुए तो क्या

जिंदगी जीने की खातिर,किश्तें चुका तो रहे हो न?
अंधेरी रात,जुगनू बन सही,टिमटिमा तो रहे हो न?

जद्दोजहद के बाद बुलंदियों पर जाकर बैठ तो गए हो।
अब कहो,नई इबारतें बदल के,लिख पा तो रहे हो न?
 
वक्त सुरसा सा मुँह खोले निगलने को तैयार बैठा है। 
जैसे-तैसे,कैसे भी,मन को अपने बहला तो रहे हो न?

दामन में माना मुफ़लिसी के सिवा कुछ है हांसिल नहीं।
मगर ख़्वाबों की सुनहरी रेजगारियां बचा तो रहे हो न?

"उस्ताद" न हुए नामवर गालिब,मीर के जैसे तो क्या?
मुग़ालते में रह तुम कम से कम मुस्कुरा तो रहे हो न?

नलिनतारकेश @उस्ताद

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