Monday, 2 January 2023

卐ग़ज़ल:500 :पंच शतक ग़ज़लों का सफर पूरा हुआ 卐

जो भी सुनिए जो भी कहिए सब रब का नाम है।
बस इस बात को महसूस करना अपना काम है।।

कतरे-कतरे हर शै में वही ख़ामोशी से है छुपा।
ढूंढे जो शिद्दत से कोई तो वही उसका धाम है।।

आजकल सस्ते-मद्दे का जमाना ही कहाँ रहा जनाब।
बिकता है वो सब कुछ जिसका ऊंचे से ऊंचा दाम है।।

थककर उड़ते परिन्दे अब अपने घरों को हैं जाने लगे।
चल लौट के आजा मुसाफ़िर तेरी भी उम्र की शाम है।।

नशा तो यूँ बहुत है दुनियावी रानाइयों* में "उस्ताद"माना।*सौन्दर्य 
निगाहों से मगर कभी पीकर तो देख कैसा उसका जाम है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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