Friday, 13 January 2023

503:ग़ज़ल: सजदे की चौखट

आलिम-फाजिल बनने की दौड़ में जरा कम रहिए। 
कभी बनकर जाहिल खुद को भी भुलाया कीजिए।।

दुनिया रंग-बिरंगी लगती है बड़ी प्यारी यकीनन।
नकली चश्मा उतार हुजूर रूहे नजर भी देखिए।।

जाम औ साकी का दौर तो चलेगा हरेक रात यूँ ही।
सुबह उठ जाएं तो कभी खुर्शीद से नजरें मिलाइए।।

यकीं मानिए फ़ना तो होना है बुलबुले जो ठहरे।
ख़्वाबों में देखना ख़्वाब शेखजी मुल्तवी करिए।।

दीवानापन बना रहे "उस्ताद" कसम से आपका।
मगर अच्छा हो सजदे की चौखट बदल दीजिए।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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