Friday, 27 January 2023

शतदल नलिन वसंत में

ऋतुराज वसंत
=========

ऋतुराज वसंत ने विहंसते हुए,मृदुल पग अपने जब धरे।सृष्टि संपूर्ण में अलौकिक दिव्यस्वर,पोर-पोर रिसने लगे।।

चैत्र-वैशाख मास-द्वय त्याग लोक-लाज,परस्पर गले मिलने लगे।
प्रकृति नख-शिख सोलह सिंगार को,पुष्प-गुच्छ मचलते दिखे।।

अद्भुत,अप्रतिम नववधू सा,मिल रूप सब संवारने लगे। मदनमोहन संग राधा और गोप-गोपी,रास-रंग डूबते रहे।।

जड़-चेतन हर कोई सुध-बुध बिसार अपनी,झूमने-गाने लगे। 
नीलगगन से निहार रमणीय-दृश्य,देव-गंधर्व भी आने लगे।।

उर-सरोवर जन-जन निर्मल हुआ तो,शतदल "नलिन" खिलने लगे ।
स्वर्ग के अनूठे सौंदर्य-विलास भी धरा पर आज सारे फीके पड़े।।

नलिनतारकेश

Thursday, 26 January 2023

नवल वासंती मधुमास

वासंती मधुमास आयो

नवल वासंती मधुमास आयो जब धरा थिरकते।
कलरव करते पिक,सारंग,शुक गगन में फिरते।
पात-पात तरुणाई लिए स्निग्ध दमकते दिखते।
संग साथ उनके रंग-बिरंगे पुष्प भी हैं खिलते।।

वीणावादिनी के श्री चरनन में गुरु शिष्य नमन हैं करते।
ढोल-मंजीरे लेकर भक्त सभी फिर राधा-कृष्ण हैं जपते।
अति मोहक सुर-ताल श्रवण से सबके दिल हैं बिंध जाते। 
तन-मन की सुध बिसरा सुधारस चहुंओर छलकते रहते।।

रंगभरी पिचकारी ले नटवर जब,वृषभानु सुता को ढूंढें।राधाजी चतुर सयानी,सखियों संग आंख मिचौली खेलें। कहाँ पकड़ आए मायारानी जब तक स्वयं वही न चाहे।
शिथिल-गात देख प्रभु के राधा,स्वयं श्याम को रंग जाए।।

नलिनतारकेश

Wednesday, 25 January 2023

508:ग़ज़ल:: हादसा हो गया

इनायत,करम जो हम पर उनका हो गया।
अंदाज ए बयां सबका बदला सा हो गया।।

खाद,हवा,पानी से जो हमने उन्हें महरूम* रखा।*वंचित 
हाल यूँ ही नहीं अपने रिश्तों का बेजा* हो गया।।*ग़लत 

सफर में जिंदगी के तुम भी हो हम भी हैं।
नफा,नुकसान कुछ तो होना था,हो गया।।

दिल की सदा* होती तो है कबूल आज नहीं तो कल।*आवाज 
चलो खुदा का शुक्र हक में जल्द ही फैसला हो गया।।

"उस्ताद" बोझ लेकर न उतारो अपनी कश्ती दरिया में।
फिर न कहना दिलों के बीच भला कैसे हादसा हो गया।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 21 January 2023

मगर तब भी क्या मौन की व्याख्या हम कर सकते?

आगम,निगम,वेद,पुराण अष्टादश निसृत हुए। 
शिव के डमरू से जब अक्षर उदघोषित हुए ।
पाणिनि अष्टाध्यायी ने रहस्य अनावृत किए।
मगर तब भी क्या मौन की व्याख्या हम कर सकते।।

सप्तस्वर,लय,ताल के आरोह,अवरोह में जब सृष्टि गूंजे।दिगदिगन्त अपनी मृदुल आत्मीयता से हृदय-घट भरे।
झूमने लगे सब चर-अचर श्रवणानन्द से जब सम लगे।
मगर तब भी क्या मौन की व्याख्या हम कर सकते।।

हास्य,वीर,करूण,रौद्र,श्रृंगार,शांत आदि नवरस सारे।
आकर उपयुक्त समय अनगिनत मनोभावों से भरते।
हम भी दर्पण बन एक दूसरे को देख कुछ तो समझते।
मगर तब भी क्या मौन की व्याख्या हम कर सकते।।

सगुण,निर्गुण से परे जो भी साधक नाम-साधना करे।
वो तो मूक हो बस अप्रतिम ब्रह्मानंद का रसपान करे।
वाणी कुंठित हो जाए और वागेश्र्वरी भी हतप्रभ दिखे।
मगर तब भी क्या मौन की व्याख्या हम कर सकते।।




Friday, 20 January 2023

507:ग़ज़ल:: गालिब मीर न हुए तो क्या

जिंदगी जीने की खातिर,किश्तें चुका तो रहे हो न?
अंधेरी रात,जुगनू बन सही,टिमटिमा तो रहे हो न?

जद्दोजहद के बाद बुलंदियों पर जाकर बैठ तो गए हो।
अब कहो,नई इबारतें बदल के,लिख पा तो रहे हो न?
 
वक्त सुरसा सा मुँह खोले निगलने को तैयार बैठा है। 
जैसे-तैसे,कैसे भी,मन को अपने बहला तो रहे हो न?

दामन में माना मुफ़लिसी के सिवा कुछ है हांसिल नहीं।
मगर ख़्वाबों की सुनहरी रेजगारियां बचा तो रहे हो न?

"उस्ताद" न हुए नामवर गालिब,मीर के जैसे तो क्या?
मुग़ालते में रह तुम कम से कम मुस्कुरा तो रहे हो न?

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 19 January 2023

506: ग़ज़ल::सहरा में

दर्द,अवसाद से हों गर आप बोझिल तो यूँ कीजिए।

पसंदीदा दिल को छूते किसी गीत पर झूम लीजिए।।


लोगों का क्या वो तो हैं हकीम लुकमान के भी बाप।

सुन के नुस्खों को उनके कानों से अपने दफा करिए।।


मुकद्दर के सिकंदर खुद आप ही हैं,इसमें शुबहा कैसा।

हां गर यकीं न हो तो जाकर खुद को आईने में देखिए।।


कैसे-कैसे भँवरों से निकाली हैं इसी आदम ने कश्तियां।

इतिहास के पन्नों को जरा इत्मिनान से जाकर टटोलिए।।


है "उस्ताद" तिलिस्म सा गढ़ा जो दिखता कहीं-कहीं। 

सहरा में उसे खूं-पसीने की दरिया के बदौलत जानिए।।


नलिनतारकेश @उस्ताद


Wednesday, 18 January 2023

505:ग़ज़ल:: तराश हीरे सी चाहिए

वैसे तो यूँ कहना हमें कुछ भी नहीं चाहिए। 
मगर किसी हालात में कहना सभी चाहिए।।

वो एक अच्छा नेकदिल फरिश्ता है कसम से। 
समझना इसे नहीं कमजोरी उसकी चाहिए।।

परिंदों की तरह खुले आसमां में उड़ने को।
बेड़ियाँ अपने ही पाँवों की तोड़नी चाहिए।।

ऐशोआराम कमाने से है भला तकलीफ किसको।
हां निगाहों में बचा रहना थोड़ा सा पानी चाहिए।।

तुम्हारे तसव्वुर में ही क्यों हकीकत में भी वो आएगा। 
तराश बस सूरत को "उस्ताद" अपनी हीरे सी चाहिए।। 

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday, 17 January 2023

504:ग़ज़ल:: रोशनी से भरी ग़ज़ल

क्या रही बात जो तूने सोच समझ कर लिख दी ग़ज़ल। 
झर-झर झरने सी बहती रहे असल तो है वो ही ग़ज़ल।।

यकीनन तकलीफ,परेशानियों से तू गुजर रहा होगा।
लुत्फ मगर तब है जब दूसरों के दर्द कहे तेरी ग़ज़ल।। 

उंगली उठाने से दूसरों पर यार हांसिल कुछ होता नहीं। 
चाहिए कमजोरी को अपनी बयां करें हमारी ही ग़ज़ल।। 

कोहरा है हर कदम सर्द दिनों को लपेटे अपने चुंगल में।
हो सके तो लिख ऐसे माहौल में रोशनी से भरी ग़ज़ल।।

चांद सितारे आसमान में पूरी शिद्दत से लगे हैं इबादत में।
बात तो है "उस्ताद" तभी जब बने ये जिंदगी तेरी ग़ज़ल।।

नलिनतारकेश "उस्ताद"

Friday, 13 January 2023

मकर संक्रांत की बधाई

मकर में बढ़े जो सूर्यनारायण,उत्तरायण की पगडण्डियाँ। चारों दिशा उड़े देखो,कितना उल्लास-रस,मोरी मईय्या।। 

बिहू,पोंगल,घुघुती त्योहार या हो चाहे लोहड़ी की ता-ता थैय्या। 
तिल,गुड़ की मिठास तो लेती जोर चटखारे जुबान मोरे भैय्या।।

अवध में रघुनंदन जी उड़ावें पतंग,मां सीता दे रहीं छोड़िय्या।
वहीं बरसाने राधा ने काट दी पतंग,रह गई ताकते कन्हैया।। 

मधुमास की आहट सुन,प्रेमी जन झूमते,ले हाथों में बईयां।।
"नलिन" उर-सरोवर,खिले अकूत,मगन हो गा रहे सब गवैया।।

नलिनतारकेश

503:ग़ज़ल: सजदे की चौखट

आलिम-फाजिल बनने की दौड़ में जरा कम रहिए। 
कभी बनकर जाहिल खुद को भी भुलाया कीजिए।।

दुनिया रंग-बिरंगी लगती है बड़ी प्यारी यकीनन।
नकली चश्मा उतार हुजूर रूहे नजर भी देखिए।।

जाम औ साकी का दौर तो चलेगा हरेक रात यूँ ही।
सुबह उठ जाएं तो कभी खुर्शीद से नजरें मिलाइए।।

यकीं मानिए फ़ना तो होना है बुलबुले जो ठहरे।
ख़्वाबों में देखना ख़्वाब शेखजी मुल्तवी करिए।।

दीवानापन बना रहे "उस्ताद" कसम से आपका।
मगर अच्छा हो सजदे की चौखट बदल दीजिए।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Thursday, 5 January 2023

राधा कृष्ण

अरुण "नलिन" अधर कृष्ण ने जब मधुर वेणु तान छेड़ी। दौड़ती-भागती आंचल फैलाए राधा सन्मुख हो गई खड़ी।।

अप्रतिम प्रेम सुधा-रस फिर तो क्या था बरसता रहा।
ब्रम्हांड के पोर-पोर नवल कौतुक की लग गई झड़ी।।

कजरारे चितवन आमने-सामने गुत्थम-गुत्था लड़ने लगे। बांवरी वृषभानसुता मनमोहन पर मगर अति भारी पड़ी।।

हास-परिहास,नोकझोंक का ये सिलसिला जो चला। 
कौन जाने कब तक ,जब थम गई काल की ही घड़ी।।

नलिनतारकेश

Tuesday, 3 January 2023

502:ग़ज़ल

502:

मोटी कोहरे से भरी रजाई ले खुर्शीद* है सो गया।*सूर्य 
कमबख्त उठता ही नहीं जाने क्या इसे हो गया।। 

यूँ सर्द मौसम है थोड़ी बहुत तो चलती ही है मगर।
शायद कल रात कुछ ज्यादा ही चढ़ाकर खो गया।।

आपसी रिश्तो में जब भी तीसरे को शामिल किया।
देखो वो आकर हमारे बीच फूट के बीज बो गया।।

झिड़कियों,नसीहतों,उलाहनों से उफन रहा था।
जो हमदर्द बन गले लगा लिया मैंने तो रो गया।।

बताते थे "उस्ताद" तुम बहुत बड़ा ज़हीन खुद को।
लो आज अदना सा शागिर्द ठाठ से रील धो गया।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

501:ग़ज़ल अब तो

501

किसी और की जरूरत नहीं रहती यारा अब तो।
खुद से ही हूँ हजामत अपनी बना लेता अब तो।।

तारीखें जो बदल जाती हैं खुद से उनको बदलकर।
सोचता हूँ यही अक्सर हो गया मैं मसीहा अब तो।।

जबसे खुद को एक दूरी बना जांचने की सोची है।
कसम से सौ नुस्ख खुद में ही दिखने लगा अब तो।।

वही चेहरा हर रोज जाने क्यों मुझे दिखाता है आईना।
तंग इससे आ गया हूँ सो बदलना तो पड़ेगा अब तो।।

दिन में तो मसरूफियत सबको ही रहती है मगर।
"उस्ताद" रातों में भी कौन है भला सोता अब तो।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 2 January 2023

卐ग़ज़ल:500 :पंच शतक ग़ज़लों का सफर पूरा हुआ 卐

जो भी सुनिए जो भी कहिए सब रब का नाम है।
बस इस बात को महसूस करना अपना काम है।।

कतरे-कतरे हर शै में वही ख़ामोशी से है छुपा।
ढूंढे जो शिद्दत से कोई तो वही उसका धाम है।।

आजकल सस्ते-मद्दे का जमाना ही कहाँ रहा जनाब।
बिकता है वो सब कुछ जिसका ऊंचे से ऊंचा दाम है।।

थककर उड़ते परिन्दे अब अपने घरों को हैं जाने लगे।
चल लौट के आजा मुसाफ़िर तेरी भी उम्र की शाम है।।

नशा तो यूँ बहुत है दुनियावी रानाइयों* में "उस्ताद"माना।*सौन्दर्य 
निगाहों से मगर कभी पीकर तो देख कैसा उसका जाम है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 1 January 2023

499:ग़ज़ल: तेरा नाम न भूलने की

तेरी आँखों में आज शरारत कुछ तो है। 
ये ओढ़ी हुई गजब शराफत कुछ तो है।।

अब ज्यादा क्या कहें सब तो हैं जानते।
खबरें यही बतातीं कयामत कुछ तो है।।

प्यार का इजहार उसने सरेआम किया।
इसमें कहो कहाँ भला गलत कुछ तो है।।

वो मुझे भुला कर अब हिचकियाँ दे रहा।
देर ही में सही उसमें नदामत* कुछ तो है।।*पश्चाताप 

न गले ही लगाया मुझे न बात करी कुछ भी।
मगर फेरी नहीं पीठ सो रवायत* कुछ तो है।।*परम्परा

यूँ तो याद आता नहीं "उस्ताद" कुछ भी वक्त पर।
पर चल ये तेरा नाम न भूलने की आदत कुछ तो है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद