Thursday, 27 May 2021

गजल:335- बात आसां कहॉ

साधन करते कभी तो ये उम्र गुजर जाती है।
मगर मजाल जो उसकी इनायत हो पाती है।। 
इसके उलट यूँ दिखता है ऐसा भी कभी तो। 
बिना किए कुछ भी तकदीर बदल जाती है।। 
तकदीर,तदबीर में अक्सर ही होती है कशमकश।
बात ये आसां कहाँ जो हमें समझ
आती है।। 
शहंशाह बने जो बहुत फिरते हैं बिना बात के। 
यही गुरूर तो हमारा कुदरत तोड़ जाती है।। 
दिल में खिले हों अगर मुहब्बत के गुलाब।
बताना न भी चाहे हम आँखें बताती हैं।।
इशारों से रब के चलता है दुनिया का कारोबार।
बस हमें यही एक बात "उस्ताद" भाती है।।
@नलिनतारकेश 

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