Sunday, 23 May 2021

साधना

त्रिस्पर्शा योग युक्त मोहिनी एकादशी की बधाई 
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सरस्वती भी बुद्धि फेर सकती है मात्र मंथरा की।
होती नहीं हिम्मत उसे जो डिगा सके श्रीभरत की।।
साधक बड़े-बड़े फिसल जाते यहाँ तो बस इसलिए।
करते नहीं बारीक आत्मालोचना जो नित स्वयं की।।
कुंजी मिलती कर्म,ज्ञान,भक्ति योग की मनोवांछित।
निष्कपट,दृढ शरणागति करें जो हम अपने राम की।।
नचाता तो है वही अन्ततः हम सभी को अपनी ताल पर।  एकनिष्ठ मगर होती नहीं चिन्ता कभी भी दुर्गम मार्ग की।।
परिवेश का भी प्रभाव पड़ता नहीं है सच्चे,शुद्ध जीव पर।
हिरण्यकशिपु घर कैसे पलती वरना भक्ति प्रहलाद की?

@नलिनतारकेश 

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