Sunday, 30 May 2021

रब मिलता है

दर्द हो शिद्दत से अगर गहरा तो रब भी दिखता है। 
पाक़ीज़ा प्यार तो उसका बमुश्किल से मिलता है।।
जो छलक जाए आँसू तो बस खारा ही बहता है।
मोती तो वो बस सीप सी निगाहों में बनता है।। 
दर्द की ख्वाहिश तो बड़ी थी कि तोड़ दे बाँध सभी।
काजल लगी आँख मगर वो छलक कहाँ सकता है।।
मिलती नहीं है मुहब्बत अशर्फियों से बाजार में।
दर्द तो बेहिसाब दामन में अपने पालना पड़ता है।।
वो मिल जाए सो "उस्ताद" खुद को छलनी कर लिया।
जानता कहाँ था उसे पाने का दर्दे पैमाना इतना बड़ा है।।

@नलिनतारकेश 

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