Friday, 28 May 2021

भक्तिभावधारा

निर्मल भावनामयी,हिमशिखर के उच्च दिव्यागार से।
भक्तिमति गंगा प्रवाहित होती,जब प्रखर साधना से।।
कल-कल,मधुर हृदयस्पर्शी कूकती फिरती,है वो बड़े भाव से।
नाद-निनाद करते हैं अब सभी जीव,उन्मुक्त हो उल्लास से।।
ज्ञान होता है उन्हें कि,होंगे मुक्त अब सभी विकार से।
मिलेगा दिव्यामृत का पान,अब तो अत्यंत सौभाग्य से।।
पग धरेगी,रुन-झुन पायल बजाते,वो तो अग्रगामी चाव से।
निर्माण होगा हर घड़ी,अलौकिक परिवेश का फिर प्यार से।।
त्रिपथगामी भक्ति-धारा करेगी मुक्त सबको, त्रिताप से।
जो भी गहरी डुबकी लगाएगा उसमें,तन-मन-प्राण से।।
कनक-कान्तिमय जीव होगा,पारस सदृश छूने मात्र से।
निज आत्मरूप को पहचान होगी,भेंट अपने इष्टदेव से।।
दु:ख,पीड़ा,कष्ट,व्याधि सब मिटेगी,तत्काल ही कृपा से।
परमानंद होगा फिर तो नित्य ही,रोम-रोम आराध्य से।।
निश्छल करें यदि हम समर्पण,पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से।
आते हैं स्वयं प्रभु साकार रूप,बस भक्त की एक पुकार से।।


@नलिनतारकेश 

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