Friday, 26 March 2021

तदबीर से सजा लें

दुनिया के रंगमंच पर आए हैं तो यह कमा लें।
मिला है जो पात्र हमें बस सच्चाई से निभा लें।।
यूँ देखने को ही है हर शख्स बस यहाँ एक जैसा।
जुदा किरदार अपना जरा,आओ दमदार बना लें।।
धरती और आसमान,सरिता और पहाड़ के जैसा।
रखता जो हर कोई अनूठापन बस उसे जिला लें।।
बड़े सौभाग्य से मिला है हमें जो वरदान जिंदगी का। 
हर सांस आओ उमंग और उल्लास इसमें जमा लें।। तकदीर भी है इसमें कोई शक हो शुबहा तो है नहीं। 
हो सके जितना भी हमसे चलो तदबीर से सजा लें।।

नलिन @तारकेश

Wednesday, 24 March 2021

।होरी मुबारक

रंगभरी एकादशी की पूर्व संध्या में ढेर बधाई युगल सरकार और आप सभी को।

खेलन होरी आ जाना श्याम,खुद से गलियन मोरी।
पकड़ बरजोरी वरना उठा लाएंगी,सखी सब मोरी।।
रंग अबीर,गुलाल और केसर,भरी हैं सवा मन बोरी।
मलने को गालन,बेचैन बैठी,गांवन की हर एक गोरी।।
कर देंगी सराबोर,सर से पांव सब,सखी सहेली।
बना भीगी बिल्ली,होगी अकड़ सब,तेरी ढीली।।
डुबो देंगी पकड़ सब इस बार तुझको,कीचड़ की होंदी।
डरके चुपचाप बैठा रहेगा फिर ताउम्र,यशोदा की गोदी।।
यूँ चकल्लस करने में तेरा,नहीं कोई है जरा भी सानी।
हंसी-ठट्ठा करने को बस करू हूँ हरि,मैं ये छेड़खानी।।
रंग-रंगीले, श्याम-मनोहर लूं तेरी मैं,बारम्बार बलिहारी।
बुरा ना मान ये तो बस तेरी राधा की,रंग भरी पिचकारी।।

नलिन @तारकेश 


 

Tuesday, 23 March 2021

राम नाम

राम नाम पुकारिए,हो कर मस्त मलंग।
अवगुन चाहे कोई भी,करे कभी न तंग।। 
राम नाम महामंत्र है,महिमा बड़ी अनंत।
कामी-क्रोधी जो जपें,हो जाएं सब संत।। 
राम नाम की महिमा,गाते सब सद्ग्रंथ। 
राम-दीप जो उर जले,भटके कभी न पंथ।। 
राम नाम ले जिह्वा,जब नौका बन तैराए।
सतत जाप चप्पू चले,भवसागर पार लगाए।।
राम नाम के दो अक्षर,सहज सुलभ सब कोए।
कामधेनु बन पूर्ण करें,जो कोई इच्छा होए।।
राम नाम जब लौ लगे,तृष्णा जाए भाग।
रंग उड़े फिर मस्ती का,लगे न कोई दाग।।

नलिन @तारकेश

जाने फिर क्यों

जाने फिर क्यों
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जो भी है अतिक्लिष्ट,गूढ वही सबको आता पसंद है। 
जाने फिर क्यों सीधा-सरल बस,कहने को ही पसंद है।। यद्यपि बनाता तो काम सारा हमारा आत्मविश्वास है। 
जाने फिर क्यों सबके सामने,झोली फैलाना पसंद है।। सादगी,दयालुता आदि सभी,श्रेष्ठ व्यक्तित्व के भाव हैं।
जाने फिर क्यों सबको ओढ़ना,बनावटीपन ही पसंद है।।
हर दिन बड़ी सहजता से,नून-रोटी से कट सकता है।
जाने फिर क्यों आदमी को इतना द्वन्द्व-फंद पसंद है।। देता है ईश्वर सदा हमको जो भी सर्वश्रेष्ठ उपयुक्त है। 
जाने फिर क्यों हमें अपना,बस ये छुद्र भाव पसंद है।।
दो अक्षर बस एक राम नाम,भरता आनंद-परमानंद है। 
जाने फिर क्यों सदा हमें,दुरूह जाप ही आता पसंद है।।

नलिन @तारकेश

Sunday, 21 March 2021

कहाँ आएगा

जगत का व्यवहार सदा रहा बड़ा अबूझ,समझ कहाँ आएगा। 
हर पल,हर घड़ी बदलता प्रवाह कालचक्र,समझ कहाँ आएगा।। 

स्थिर है यहाँ क्या कहो तो?, सदा जिसे तुम पालते-पोसते हो। 
रेत की मानिन्द फिसलता सदा हाथ से,पकड़ कहाँ आएगा।।

नेह-प्रेम लौकिक जिसे मान स्थिर तुम,हर कदम हो बढ़ रहे। 
बिछड़ा जो साथ जब भी कभी,फिर वो भला कहाँ आएगा।।
 
देह,वाणी,रूप भाव खिलें अनगिनत,कुछ देर बस पुष्पगुच्छ से।
कुम्हलाने लगे मगर जब शाख ही तो फिर वसंत कहाँ आएगा।।

मिला जीवन दिव्य जो यह हमें,न जाने कितने पुण्य प्रताप से।
व्यर्थ कर दिया जो माया-मोह तो,फिर पुनः कहाँ आएगा।।

नलिन @तारकेश। 

Friday, 19 March 2021

जरूरत है

हर कदम राह जिंदगी की बड़ी ही रपटीली है।
संभल कर तभी तो यहां चलने की जरूरत है।।
देखना स्वप्न तो अच्छा है,खुली या बंद आंख से।
सतत पर मृग-मरीचिका से बचने की जरूरत है।।
सारे के सारे रिश्ते-नाते टिके हैं गुणा-भाग पर केवल।
नाता जो एक अटूट बस उसे ही साधने की जरूरत है।।
सोच तेरी,मेरी हो तो सकती है अलग कभी-कभी।
मनभेद हो न कभी बस ये विचारने की जरूरत है।।
सिंगार तो खूब करते रहे ताउम्र इस नश्वर देह का हम।
अब अजर-अमर इस रूह को संवारने की जरूरत है।।

नलिन "तारकेश"

Thursday, 18 March 2021

तो क्या कहना।

जीते-जीते मरना आ जाए तो क्या कहना।
रोते-रोते हंसना आ जाए तो क्या कहना।। 
दोनों हाथ खूब बटोरी हमने दौलत दुनिया की।
इन्हीं हाथों उलीचना आ जाए तो क्या कहना।।
राग-द्वेष,काम-क्रोध बहुत सताते जीवन भर।
वश में इनको करना आ जाए तो क्या कहना।।
अपनी खातिर तो हम भरते ही रहते सांसे जीने को।
गैरों के उर में प्राण फूंकना आ जाए तो क्या कहना।। 
वो जो रहता तेरे-मेरे,हम सबके ही भीतर में।
हमको उसे देखना आ जाए तो क्या कहना।।

नलिन "तारकेश "

Friday, 12 March 2021

330-गजल :जो जानते

जो जानते पता उसका वो बता सकते नहीं।
आलिम*,फाजिल* उसे जरा भी जानते नहीं।।*ज्ञानी

जो चाहे लाख जोर आजमाइश कर ले कोरे जुमलों से।
बगैर सीरत*और सादगी कदम उस तक पहुंचते नहीं।।*सद्गुण 

बांकी अदाओं से चुपचाप कत्ल करता है वो तो अपनी।
सिवा लेने के सजदे करने को हम कुछ भी बचते नहीं।। 

अहसास है सिफत हमारे लिए वो दूर या कि पास से। 
जो नजरें ही चार हो गईं तो कहीं के हम रहते नहीं।।

हैं बड़े दिखते तिलिस्म महफिल में परवरदिगार की। 
होश उड़ते "उस्ताद" के,मदहोश यहाँ भटकते नहीं।।

नलिन @उस्ताद 

Thursday, 11 March 2021

329-गजल:महाशिवरात्रि

लगन अब तो ऐसी लगी कि छूटती नहीं।
उसके सुमिरन की माला अब टूटती नहीं।।
यदि हो जाए इकराम* एक बार को भी उसका।*अनुग्रह 
दुनियावी चाहतों की आरजू कोई रहती नहीं।।
जब कर ही डाला बेभाव खुद को उसके हवाले।
हथेली किसी के आगे बख्शीश को खुलती नहीं।।
अकीदा* जिसका हो गया बस एक नाम पर ही तेरे।*भरोसा
रंजो गम की फिर बरसात बिगाड़ कुछ सकती नहीं।। 
बड़ा अजब है "उस्ताद" ये कायनात का सच में।
शागिर्दी बगैर इबादह* के  इसकी मिलती नहीं।।
*पूर्ण समर्पण 

नलिन "उस्ताद "

Monday, 8 March 2021

328- गजल :महिला दिवस पर

महिला-दिवस 8मार्च पर:
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रिश्तो के गुलों को गूँथने का शऊर* है उसके पास।*सलीका
जाहिल को आलिम बनाने का हुनर है उसके पास।। खैरख्वाह है सबकी फिर अजीज या कि वो गैर हो।
परवरिश की बड़ी अलहदा धरोहर है उसके पास।।
आंचल में संजोई छांव सुकून भरी बस बांटने को।
फकत खुद की चुनी रेतीली दोपहर है उसके पास।।
हर घड़ी,हर सांस बस फिक्रमंद है सबके लिए। 
ये जाने खुदा ही कैसा कलेवर* है उसके पास।।*देह
कहे बगैर कुछ भी तकलीफ जानती है तेरी,मेरी,सबकी।
कहा सच ही "उस्ताद" कयामत की नजर है उसके पास।।

नलिन "उस्ताद "

Saturday, 6 March 2021

327 - गजल:हकीकत ख्वाब तो

हकीकत ख्वाब तो ख्वाब तब्दील हकीकत में हो गए।
उनके साथ चले जब-जब दो कदम हैरत में हो गए।।
आँखों में सुकून देता नहीं अब तो और कोई मंजर।
जब से कैद उम्र भर को उनकी मोहब्बत में हो गए।।
बदलती है तकदीर बस एक पल में देखो कैसे।
अब दुश्मन भी सारे हमारी खिदमत में हो गए।।
दुनिया के छूटे झमेले ये चकरघिन्नी के जैसे।
हम रंगे जबसे उनके रंग में फुर्सत में हो गए।।
भूला दुनियावी तसव्वुर* और खुद को भी भूले। *कल्पना
खुदा की जब से "उस्ताद" इबादत में हो गए।।

नलिन "उस्ताद "

Friday, 5 March 2021

326-गजल :ये तेरी रहमतों

ये तेरी रहमतों* का ही असर है।*कृपा
सुकूं ए जिंदगी न कोई कसर है।।
धन-दौलत,माल-असबाब बेकार सारे। 
चाहिए मुझे तो बस एक तेरी नजर है।।
उठापटक,जद्दोजहद भरी दुनिया में।
बता बिन तेरे कहाँ किसकी बसर है।। 
जो बैठ गया आस्ताने* पर आकर तेरे।*चौखट 
रात कहाँ रात उसकी तो वो सहर* है।।*सुबह 
खुदा की दुनिया में जरा गौर फरमाओ।
हर गम और खुशी सिलसिला ए बहर* है।।*छन्दबद्धता
मुतमइन* हूँ तेरा दीदार तो होकर रहेगा।*इत्मीनान 
यूँ ही तो नहीं "उस्ताद" ए जिगर है।।

नलिन "उस्ताद

Thursday, 4 March 2021

गजल - 325 जरूरत ही बना लो तो

जरूरत ही बना लो तो हर चीज को रो लो।
नहीं तो बन के फकीर तुम कहीं भी सो लो।।
हवस है आदमी की जो बुझती ही नहीं कभी। 
अरे नामुरादों दिमाग की खिड़कियाँ तो खोलो।।
करेगा यूँ तो खुदा ही इलाज दुश्मनों का सारे।
जरा लबों से तुम भी तो मगर इंकलाब बोलो।। 
सुरों का सैलाब रहता है तुम्हारे ही भीतर।
लगाकर सुनो कान और मस्ती में डोलो।।
हो जाएं कलम के तुम्हारी सभी  मुरीद।
गजल में "उस्ताद" कुछ नायाब रंग घोलो।।

नलिन "उस्ताद "

Wednesday, 3 March 2021

गजल - 324 कर्म का थप्पड

ये जो मासूम बनके तू छुरा घोंपता है।
अरे नासमझ अल्लाह सब देखता है।।

जूतियाॅ उठाने में उम्र कट गई सारी।
किस मुँह खुद्दारी की बात कहता है।। 

पोतेगा कालिख तेरा शहर ही तुझ पर एक दिन।
बरगलाता काहे आवाम को हर वक्त रहता है।।

एक मुद्दत से यहाँ गरीब एड़ियां रगड़ रहा।
फरियाद सुनना काहे तौहीन समझता है।।

सर से पानी उतरने ही वाला है गुस्ताखियों का।
नादान सब्र का काहे भला इम्तहान रखता है।।

सहारा उसे क्या चाहिए यहाँ किसी का कहो। 
कहे बगैर जब खुदा उसका हर काम करता है।।

खैंची लकीरों से अपनी ही गुजरता है "उस्ताद" हर कोई।
 भला ये वक्त भी कब,कहाँ किसका गुलाम बनता है।।

नलिन "उस्ताद "

Tuesday, 2 March 2021

गजल- 323 रोना पड़ेगा

रोना पड़ेगा जार-जार ख्वाबों को सजाने के लिए।
खिलेंगे गुल तभी तो बंजर आशियाने के लिए।। 

पता नहीं है अभी तुम्हें पाला पड़ा है किससे।
करेंगे हम हर हद पार तुम्हें मनाने के लिए।। 

गमों का खजाना है जिनके पास अकूत है।
हैं सजाए वो ही लबे हंसी दिखाने के लिए।।

गुनगुनाता है आफताब* चाँदनी मस्ती में झूमती है। 
जबसे आया है मेरा यार मुझे महकाने के लिए।।
(*सूर्य )

मरने को कहोगे तो मर जायेंगे पूरी तरह से भी।
यूँ मर रहे हैं खुद को महज जिलाने के लिए।।

हर हर्फ* पर मेरे करेंगे दानिशमंद** नुक्ताचीनी**
लिखी है ग़ज़ल बस तुझे ही सुनाने के लिए।।
(* शब्द , ** श्रेष्ठ विद्वान, *** कमियाॅ निकालना)

यूँ नहीं बने "उस्ताद" फकत एक दिन में हम।
बेले हैं पापड़ कैसे-कैसे जमाने के लिए।।

नलिन "उस्ताद "

Monday, 1 March 2021

गजल- 322 सजदा उसकी चौखट

सजदा उसकी चौखट पर हर रोज करता हूँ।
तब्दील गमों को यूँ ही खुशियों में करता हूँ।।
आईने की तरह खोलता हूँ यूँ तो कलई सबकी।
हाँ खुद को भी नहीं मगर यार बख्शता हूँ।।
जो किया आज या जन्मों पहले मैंने ही कभी।
आ रहा वहीं झोली तो नसीब क्यों रूठता हूँ।।
कहता है खुदा मिलेगी हर शै जो भी चाहोगे तुम।
फिर भला क्यों नहीं उसे ही शिद्दत से चाहता हूँ।।
  जलजला सा मौजों का सुलगता है रूहे समंदर मेरी। 
  निकाल खजाना तभी तो साहिल* "उस्ताद" फेंकता हूँ ।।

*किनारा
नलिन "उस्ताद "