Saturday, 6 January 2018

दंगा कराने में

बातें बड़ी जो हमेशा वतन की खातिर करता रहा है।
दंगा कराने में हाथ उसका ही तो शामिल रहा है।।

मेहमानों का हंसी-ठट्ठा दूर तक गूंज रहा है। गरमा-गरम पकवान वो तो तन्हा तल रहा है।।

दिल के करीब होने की जिसने कभी कसम खायी।
आज वो ही उसके लिए सबसे अनजाना रहा है।।

खुले आकाश छोड़ दो परिंदों की तरह बच्चों को।
अपना नसीब लिखने वो तो खुद ही काबिल रहा है।।

ये जुल्फें बिखरी हुई चकोर सी बेचैन आंखें। लगता है उसे भी किसी से अब इश्क हो रहा है।।

जाड़ों की धूप को पसर कर छत पर सेकते हुए।
सूरज का तहे दिल से शुक्रगुजार हो रहा है।।

जाड़ा,गर्मी,बरसात हर घड़ी कड़ी मशक्कत करी  जिसने।
जाने क्यों उसे जमाना दो कौड़ी मजदूर कह रहा है।।

दौलत शोहरत तो सब बटोर ली उसने दोनों हाथ से।
मगर मालूम नहीं उसे ये हुआ की जमीर मर रहा है।।

पतंग की डोर चलो माना तुम्हारे हाथ है मगर। हवाओं का रुख मगर कहो कहां किसके हाथ रहा है।।

उसकी आंखों का नूर अजब अलहदा सा दिखा।
भीतर का"उस्ताद"दरअसल अब निखर रहा है।।

@नलिन #उस्ताद

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