मां-बाप को छोड़ वो अनाथालय से जा रहा था।
छाती से दूध मगर,ममता का बहे जा रहा था।।
इबादत को चौखट पर उसकी,मैं बाॅवला हुए जा रहा था।
जैसे बहता हुआ दरिया,मिलने को सागर में जा रहा था।।
अलग-अलग राह का,लेना चाहो तजुर्बा तो भी ठीक है।
यूँ श्रद्धा-सबूरी का रास्ता,मंजिल ही में जा रहा था।।
माना तुझमें-मुझमें बहुत कुछ रहा था जुदा-जुदा सा।
मगर साझी विरासत का भी हिस्सा बहे जा रहा था।।
ये सोच के उबर चुका हूॅ नासाज तबीयत से।
वो मुझे दरअसल बीमार बनाये जा रहा था।।
आँख में तूफां,दिल में बेचैनी थी हालात बदलने की।
देश में तभी तो वो नया,इंकलाब लाने जा रहा था।।
ये आज के शागिदॆ बड़े काबिल निकल रहे। उस्ताद बेवजह यूँ ही सोच से मरे जा रहा था।
@नलिन #उस्ताद
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