हवाएं गुनगुना रही हैं आज गली में।
है मुझे बड़ा इंतजार उनका गली में।।
पड़ता नहीं चैन रहती है बेकरारी अब तो। दिखते नहीं है जब तक मुझे वो मेरी गली में।।
सूरज ढल गया,लो चांदनी संग चांद आया। हम भला खड़े बेकार क्यों यहां इस गली में।।
आने-जाने के सब रास्ते गुजरते रहे यहां से। फिर भला क्यों रूठे रहे नसीब अपने इस गली में।।
अब तो बस बाकी रही यही एक आरजू।
हो मेरी आंखिरी शाम तेरी गली में।
कैसे कहें वो दौर कैसा था जो गुजरे अरसा हुआ।
होती थी इबादत "उस्ताद" निगाह मिलते ही गली में।।
@नलिन #उस्ताद
No comments:
Post a Comment