ऑंखें जब उससे चार हो गईं।
दिले-मस्ती बेहिसाब हो गई।।
घर से जब निकला तब धूप थी।
रास्ते में बरसात हो गई।।
जाने कितने जन्मों की ख्वाहिशें मेरी।
मिलते ही उससे तो आज पूरी हो गईं।।
अजब मिजाज है उसकी आवारगी का। रूठ कर खुद ही कहती भूल हो गई।।
जब दिले-अजीज हुआ रूबरू मेरे।
पता नहीं कब सुबह से शाम हो गई।।
आए बहुत दिनों बाद मगर फुर्सत से। इसी से सारी शिकायत हवा हो गई।।
लड़कपन की बातें करते हो बार-बार। लगता है"उस्ताद"तेरी उम्र हो गई।।
@नलिन #उस्ताद
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