बतलाओ तुम कब आओगे,काले-कजरारे मेघ।
आकुल-व्याकुल तन मन मेरा,अब तो हुआ अचेत।
सूखा-सूखा पथराया सा,रह गया हम सबका ही गेह।
ओ निष्ठुर-निर्मोही जा के कहां छुपे हो, बतलाओ तुम मेघ।
रस बिन जीवन कितना सूना,जानो तुम तो मेघ।
बरसाते जड़-जंगम तुम ही तो,अमृतकारी नेह।
कातर नयन देख मगन,उमड़-घुमड़ से पाते हैं कुछ चैन।
पर आषाढ प्रदोष भी बीत रहा,क्यों झूठे बहकाते हो मेघ।
अब तो सावन भी खोल किवाड़,आता होगा मेघ।
क्या तप्त-तिक्त अधरों से भला मिलोगे, इस अमंगल वेष।
म्लान हो रही देह कान्ति, दपॆण करने लगा है क्लेश।
तुम तो न थे कभी भी ऐसे फिर क्यों रूठे मेघ।
सो बरखा ले कर जल्दी आओ,अब तो काले मेघ।
धरती मां भी बाट जोह रही,खोले अपने केश।
हरी-भरी हो प्रकृति सारी,तब तो रहें हम शेष। बारंबार है विनती तुमसे,जल बरसाओ मेघ।।
@नलिन #तारकेश
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