भारतीय अस्मिता से खिलवाड़ करने वाले मक्कारों के लिए: राजनितिज्ञों,भूतपूवॆ वरिष्ठतम से लेकर छिछले पत्रकारों तक सभी हेतु
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उतारकर खोल अपना भेड़िए सब हुआ-हुआ करने लगे।
देखा शिकारी को सामने तो विधवा-विलाप करने लगे।।
प्यार,एहतराम से उठा अशॆ* पर इन्हें बिठलाया। *आकाश
मगर ये गुस्ताख,नमक-हराम सिर पर ही चढने लगे।।
जज्बात,लगाव तो कुछ दिखता ही नहीं वतन के लिए।
हर बात ये बेशर्म हो तिल का ताड़ बनाने लगे।।
सत्ता,कुर्सी से क्या दूर हुए चंद रोज को।
ये तो हर बात पर कपड़े ही उतारने लगे।।
शर्म,हया,लाज सब तो तुमने बेच कर खा ली *कमजफॆ। *नीच
हम ही थे दरअसल नासमझ जो तुझे *अजीम मानने लगे।। *महान
बहुत प्यार,मुहब्बत की बात कर के देख ली इन नामुरादों से।
बात तो बनेगी"उस्ताद"जब आवाम ही पकड़ जुतियाने लगे।।
@नलिन #उस्ताद
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